‘कश्मीर फाइल्स’ एवं ‘केरल स्टोरी’ के बाद ‘साबरमती रिपोर्ट’ तीसरी ऐसी फिल्म है, जिसने उस दर्दनाक सच्चाई को उजागर किया है, जिसे हिन्दूविरोधियों द्वारा तरह-तरह के षड्यंत्र रचते हुए जानबूझकर देशवासियों से छिपाया गया। गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन की दो बोगियों पर पहले भीषण पथराव कर और फिर उनमें आग लगाकर 59 कारसेवकों को जिंदा जला डाला गया था। साबरमती एक्सप्रेस से जुड़ी हुई इन दो आरक्षित बोगियों में बडी संख्या में अयोध्या से लौट रहे कारसेवक सवार थे, जो भजन-कीर्तन कर रहे थे। उन कारसेवकों में महिलाओं एवं वृद्धजन के साथ छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल थे।
गोधरा की उस हृदयविदारक घटना की खबर जब गुजरात में फैली तो वहां कई स्थानों पर मुस्लिम विरोधी दंगे शुरू हो गए। वे दंगे पूरी तरह गोधरा के नृशंस नरसंहार की प्रतिक्रिया में हुए थे। यदि गोधरा का भयंकर कांड नहीं हुआ होता तो गुजरात के उक्त दंगे भी हरगिज न भड़कते। नरेंद्र मोदी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उनकी सरकार ने सख्त प्रशासनिक कार्रवाई कर दंगों पर जल्दी काबू पा लिया था। काफी हिंदू पुलिस की गोली से भी मारे गए थे। लेकिन हिंदुओं और मोदी सरकार को बदनाम करने के बड़े पूर्वनियोजित ढंग से प्रयास किए गए। तरह-तरह के झूठे किस्से गढ़कर चारों ओर प्रचारित किए गए तथा विश्व भर में भारत की छवि खराब करने की कोशिश की गई। झूठ का पहाड़ खड़ा कर मोदी को उत्पीड़ित किया गया।
तथ्य यह है कि दीर्घकालीन कांग्रेसीराज के समय गुजरात में सांप्रदायिक दंगे होना बहुत आम बात थी। कांग्रेस की मुस्लिम-तुष्टिकरण नीति के कारण मुस्लिम कट्टरपंथियों को हमेशा सरकारी संरक्षण प्राप्त रहा करता था। फर्जी सेकुलरवाद से ग्रस्त हिंदू नामधारी सत्तासीन कांग्रेसियों ने पिछले सात दशकों में कट्टरपंथी मुस्लिमों को इतना शक्तिशाली बना दिया था कि वे हिंदुओं एवं भारतीय संस्कृति से तो घृणा करते ही थे, उनको पूरी तरह मिटाने पर तुले हुए थे। वस्तुतः वे देश की जड़ें खोखली कर रहे थे। ऐसी ही मनोवृत्ति के लोगों ने गोधरा कांड किया और इसके लिए उन्होंने पहले से पूरी तैयारी कर ली थी।
गुजरात दंगे को इस तरह प्रचारित किया गया कि वह दंगा हिंदुओं ने शुरू किया और मुस्लिमों पर बहुत अत्याचार किए गए। दुष्प्रचार इतने व्यापक एवं प्रभावशाली रूप में किया गया कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नरेंद्र मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाने का फैसला कर लिया था। लेकिन उस समय उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी मोदी को हटाने के विरुद्ध अड़ गए थे, जिससे मोदी मुख्यमंत्री पद पर बने रह पाए थे। उसी दौरान की एक घटना है। समाजवादी पार्टी से भारीभरकम लाभ उठा चुके एक मुस्लिम पत्रकार गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजभवन में हुए अल्पाहार-आयोजन में एक नकली साधु को साथ लेकर आए थे और गुजरात में हिंदुओं द्वारा किए गए अत्याचारों के झूठे किस्से घूम-घूमकर सुना रहे थे। उक्त नकली साधु उन पत्रकार की बातों का बार-बार सिर हिलाकर समर्थन कर रहा था।
उसके कुछ समय बाद ईद का पर्व था, जिस दिन मैं एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के यहां ईद मिलने गया था। मुझे उस समय घोर आश्चर्य हुआ, जब वे महाशय मुस्लिम पत्रकार की तरह गुजरात के दंगों को लेकर फैलाए गए झूठे किस्सों को दुहराते हुए मोदी को अभद्र अपशब्द कहने लगे थे। प्रायः लगभग सभी मुस्लिमजन उस समय की तरह अभी भी मोदी को अपशब्द कहा करते हैं। हिंदूनामधारी फर्जी सेकलुरिए भी इन मुस्लिमों का भरपूर साथ देते हैं।
‘साबरमती रिपोर्ट’ में गोधरा कांड के बारे में जो दिखाया गया है, उस सच्चाई की मुझे शुरू से जानकारी थी। वस्तुतः फिल्म में जो दिखाया गया है, उसकी मात्रा वास्तविक सच्चाई से बहुत कम है। बिलकुल उसी प्रकार, जिस प्रकार ‘कश्मीर फाइल्स’ में दिखाए गए हिंदुओं पर अत्याचार उस वास्तविक सच्चाई से बहुत कम थे, जो वहां घटित हुई थी। मैंने उस समय एक गजल लिखी थी, जिसका एक शेर था:-
‘फर्जी सेकुलरवाद’ झूठ से दिन को कर देता है रात,
नहीं गोधरा दिखता उनको, दिखता है केवल गुजरात।
‘साबरमती रिपोर्ट’ हर दृष्टि से अत्यंत उत्कृष्ट फिल्म है। निर्देशन, पटकथा, अभिनय, सभी लाजवाब हैं। उसमें अंग्रेजी पत्रकारिता एवं बिके हुए न्यूज चैनल की भी पोल खुली है। सभी कलाकारों का अभिनय तो अतिसराहनीय है ही, किन्तु नायक की भूमिका अदा करने वाले विक्रांत मैसी ने जैसा स्वाभाविक अभिनय किया है, उसके लिए उसे पुरस्कृत किया जाना चाहिए। जिस समय उसकी न्यूज चैनल की बाॅस गोधरा की सच्चाई देखकर भी माइक पर अपने मुख्यालय को खबर भेजते समय झूठ बोलती है, उस समय कैमरामैन के रूप में नायक ने अपने चेहरे पर भावों की जो प्रतिक्रिया व्यक्त की, वह अविस्मरणीय रहेगी।
फिल्म की एक विशेषता यह भी है कि गोधरा कांड को लेकर जो झूठ बातें प्रचारित की गई थीं, उन्हें भी फिल्म में दिखाया गया है तथा बड़े तर्कपूर्ण ढंग से उन झूठी बातों की काट की गई है। स्मरणीय है कि गोधरा में उन बोगियों के बारे में यह प्रचारित किया गया था कि उनमें आग लगाई नहीं गई, बल्कि दुर्घटनावश लगी थी। तत्कालीन रेलमंत्री लालू यादव ने अपने एक पिट्ठू की अध्यक्षता में एक आयोग बनाकर ऐसा ही झूठा निष्कर्ष दिलवा दिया था। जबरदस्ती यह सिद्ध करने की कोशिश की गई कि आग कारसेवकों ने स्वयं लगाई थी, जबकि वास्तविकता यह थी कि दोनों बोगियों से किसी ने किसी प्रकार भागने की कोशिश की तो उसे घेरकर फिर आग में धकेल दिया गया था।
हिंदू कौम के बारे में कहा जाता है कि वह फर्जी सेकुलरवाद से ग्रस्त होकर अपने ऊपर आने वाले खतरे के प्रति पूरी तरह उदासीन रहा करती है। इसी का परिणाम है कि हिंदू आबादी मुसलिम आबादी की तुलना में घटती जा रही है तथा कट्टरपंथी मुसलिम भारत को इसलामी देश बनाने की ताक में हैं। भारत का क्षेत्रफल कभी अफगानिस्तान तक था, किन्तु अब घटकर आधे से भी कम रह गया है। कट्टरपंथी मुसलिमों द्वारा ‘सर तन से जुदा’ की धमकियां बेरोकटोक दी जा रही हैं। लेकिन हिंदू जातिवाद में रमकर अपने ऊपर मंडरा रहे खतरे को नहीं समझता है। इसका ज्वलंत उदाहरण है कि ‘कश्मीर फाइल्स’ व ‘केरल स्टोरी’ की तरह ‘द साबरमती रिपोर्ट’ को देखने वाले दर्शक हॉल में गिनती के थे।
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‘साबरमती रिपोर्ट’ फिल्म को प्रदर्शन का प्रमाणपत्र मिलने में बहुत तरह से अड़ंगे लगाए गए तथा भरपूर प्रयास किया गया कि फिल्म प्रदर्शित न होने पाए। सोचा जा सकता है कि यदि फिल्म में गुजरात दंगे की पूरी पोल खोली गई होती, तब क्या हाल होता! वैसे, जनमत यही है कि ‘साबरमती रिपोर्ट’ की दूसरी किस्त बनाकर उसमें गुजरात दंगे की पूरी सच्चाई सामने लाई जाय। यह सत्य है कि जब ‘कश्मीर फाइल्स’, ‘केरल स्टोरी’ एवं ‘साबरमती रिपोर्ट’ में सच्चाई की थोड़ी झलक दिखाने पर उसके विरुद्ध कट्टरपंथी मुसलिम एवं हिंदू नामधारी फर्जी सेकुलरिए इतना लामबंद हो गए तो पूरी सच्चाई दिखाने वाली फिल्म बनने पर ये तत्व जाने कितना बड़ा तूफान खड़ा करेंगे! यह भी मुश्किल है कि न्यायपालिका ऐसे तत्वों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखती है। लोगों को याद होगा कि मुंबई-हमले के पाकिस्तानी अभियुक्त कसाब को फांसी की सजा रुकवाने के लिए ऐसे तत्वों ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा आधी रात को खुलवाकर सुनवाई कराई थी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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