Kavita: मैं इस घर से प्रेम करता हूँ

मैं इस घर से प्रेम करता हूँ इस टूटे-फूटे और पुराने घर से जिसकी मिट्टी सुदूर मैदानों से खोदकर लाई गई थी बैलगाड़ियों में कभी पिता के ज़माने में प्रेम…

Poem: सबसे भारी क्या है?

सबसे भारी क्या है? पर्वत पहाड़ या दर्द से भारी मन, नहीं! सबसे भारी है माथे का वो घूंघट जिसमें संस्करों के नाम पर पिघल जाती हैं कितनी ही कलाएँ,…

Poem: काली औरतें छुपा ले गयी

काली औरतें छुपा ले गयी संसार के सारे काले करतूत धोखा खाकर सोचती रही घण्टों बंद कमरों में अपने माशूक को अपने निबालों में खाती रही भर-भर कर कोयले के…

Kahani: वृक्ष हमारे जीवन दाता

वृक्ष हमारे जीवन दाता, स्वास्थ्य आरोग्य व प्राण प्रदाता। जानें इनके गुण गौरव को, है समाज से इनका गहरा नाता।। वृक्ष बचायें वृक्ष लगाएं, ज़न ज़न को मिल कर समझाएं।…

Kavita: माँ सुबह का सूरज होती है

माँ भोर में उठती है कि माँ के उठने से भोर होती है ये हम कभी नहीं जान पाये। बरामदे के घोसले में बच्चों संग चहचहाती गौरैया माँ को जगाती…

Poem: लो मैंने तुम्हें मार दिया

बहुत-सी प्रेम कहानियाँ मर जाती हैं जातियों के तले दबकर, जातियाँ हँसती हैं और खिलखिला कर कहती हैं “लो मैंने तुम्हें मार दिया” और प्रेम अपनी आख़िरी साँस तक एक…

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