Poem: आ लौट चलें

आ लौट चलें एक दिन नाचते-नाचते पता लगा यह जो यहां आता है, कुछ सकुचाता, कुछ घबराता है, वह राजकुमार है, लुटेरे वंश की गद्दी का अकेला हकदार है। दिमाग…

Poem: चली-चला!

निशाना लगाया अचूक, फिर भी साला गया चूक। आया कैसा भूचाल, जितने हम थे वाचाल, उतना है बुरा हाल। हम फेल हो गए, पटरी से उतरी रेल हो गए, टूटी…

Poem: पप्पू ज्यादा बोल रहा है

बांहें अपनी खोल रहा है, जहर फिजां में घोल रहा है। माताजी उसको अब रोको, पप्पू ज्यादा बोल रहा है। अपनी ही धुन में रहता है, आंय-बांय कुछ भी बकता…

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