नयी दिल्ली। फरवरी 2020 के अपने फैसले के बावजूद सेना में कई महिला अधिकारियों को फिटनेस के आधार पर स्थायी कमीशन न दिए जाने को सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। भारतीय सेना और नौसेना में महिला अफसरों को स्थाई कमीशन की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सेना एक महीने के भीतर महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन देने पर विचार करे और नियत प्रक्रिया का पालन करते हुए 2 महीने के भीतर इन्हें स्थायी कमीशन दे।
सुप्रीम कोर्ट ने महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन न देने पर अप्रत्यक्ष रूप से भेदभाव करने के लिए सेना की आलोचना की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत के लिए विभिन्न क्षेत्रों में ख्याति अर्जित करने वाली महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन के अनुदान के लिए नजरअंदाज किया गया। महिला अधिकारियों ने अपनी याचिका में स्थाई कमीशन पर कोर्ट के फैसले को लागू नहीं किए जाने की बात कही थी। याचिका में उनलोगों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करने की मांग की गई थी, जिन्होंने कथित रूप से कोर्ट के फैसले का पालन नहीं किया था। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने परमानेंट कमीशन के लिए महिला अफसरों के लिए बनाए गए मेडिकल फिटनेस मापदंड मनमाना और तर्कहीन बताया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेना द्वारा अपनाए गए मूल्यांकन मापदंड महिलाओं के भेदभाव का कारण बनते हैं।
3 महीने में दें कमीशन
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल फरवरी के फैसले में केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि 3 महीने के भीतर सभी महिला सैन्य अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिया जाए। जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड की अध्यक्षता वाली बेंच ने सरकार की इस दलील को विचलित करने वाला और समता के सिद्धांत के विपरीत बताया था जिसमें कहा गया था कि शारीरिक सीमाओं और सामाजिक चलन को देखते हुए महिला सैन्य अधिकारियों की कमान पदों पर नियुक्ति नहीं की जा रही है। कोर्ट ने निर्देश दिया था कि शॉर्ट सर्विस कमीशन में सेवारत सभी महिला सैन्य अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिया जाए, भले ही मामला 14 साल का हो या 20 साल की सेवा का हो।
रिजेक्ट को दिया जाये एक और अवसर
एक महीने के अंदर इन महिलाओं का फिर से मेडिकल होगा और दो महीने के अंदर परमानेंट कमीशन दिया जायेगा अगर वो मेडिकली फिट होती है। इससे पहले फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को परमानेंट कमीशन देने का आदेश दिया था, लेकिन 284 में से सिर्फ 161 महिलाओं को परमानेंट कमिशन दिया गया। इन लोगों को मेडिकल ग्राउंड पर रिजेक्ट किया गया था। कोर्ट ने कहा कि जिनको रिजेक्ट किया है उनको एक और मौका दिया जाए। कोर्ट ने कहा सेना में करियर कई इम्तिहानों के बाद बनता है। यह तब और मुश्किल होता है जब समाज महिलाओं पर बच्चों के देखभाल और घरेलू कामों की जिम्मदारी डालता है। कोर्ट में भारतीय सेना की महिला अफसरों ने याचिका दाखिल कर कहा था कि फरवरी, 2020 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद सरकार ने अभी तक 50 फीसदी महिला अफसरों को स्थायी कमीशन नहीं दिया है।
7 महिला अधिकारियों ने दायर की थी याचिका
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट आज भारतीय सेना की 17 महिला अधिकारियों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका में आरोप लगाया गया था कि सेना ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बावजूद अभी तक महिला अधिकारियों को 50% तक स्थायी आयोग (पीसी) प्रदान नहीं किया है। सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सेना में कंबैट इलाकों को छोड़कर सभी इलाकों में महिलाओं को स्थाई कमान देने के लिए बाध्य है।