Prerak Prasang: एक बार महाराज दशरथ राम आदि के साथ गंगा स्नान के लिये जा रहे थे। मार्ग में देवर्षि नारद जी से उनकी भेंट हो गयी। महाराज दशरथ आदि सभी ने देवर्षि को प्रणाम किया। तदनन्तर नारद जी ने उनसे कहा, महाराज, अपने पुत्रों तथा सेना आदि के साथ आप कहां जा रहे हैं? इस पर बड़े ही विनम्र भाव से राजा दशरथ ने बताया- भगवन, हम सभी गंगा स्नान की अभिलाषा से जा रहे है।
इस पर मुनि ने उनसे कहा- महाराज, निस्संदेह आप बड़े अज्ञानी प्रतीत होते है। क्योंकि पतित पावनी भगवती गंगा जिनके चरण कमलों से प्रकट हुई है, वे ही नारायण श्रीराम आपके पुत्ररूप में अवतरित होकर आपके साथ में रह रहे हैं। उनके चरणों की सेवा और उनका दर्शन ही दान, पुण्य और गंगा स्नान है, फिर हे राजन, आप उनकी सेवा न करके अन्यत्र कहाँ जा रहे हैं। पुत्र भाव से अपने भगवान का ही दर्शन करें। श्रीराम के मुख कमल के दर्शन के बाद कौन कर्म करना शेष बच जाता है?
पतित पावनी गंगा अवनी मण्डले।
सेइ गंगा जन्मिलेन यार पदतले।।
सेइ दान सेइ पुण्य सेइ गंगा स्नान।
पुत्रभावे देख तुमि प्रभु भगवान्।।
(मानस, बालकाण्ड)
नारदजी के कहने पर महाराज दशरथ ने वापस घर लौटने का निश्चय किया। किंतु भगवान श्रीराम ने गंगा जी की महिमा का प्रतिपादन करके गंगा स्नान के लिए ही पिता जी को सलाह दी। तदनुसार महाराज दशरथ पुन: गंगा स्नान के लिये आगे बढ़े। मार्ग में तीन करोड़ सैनिकों के द्वारा गुहराज ने उनका मार्ग रोक लिया। गुहराज़ ने कहा, मेरे मार्ग को छोड़कर यात्रा करें, यदि इसी मार्ग से यात्रा करना हो तो आप अपने पुत्र का मुझे दर्शन करायें। इस पर दशरथ की सेना का गुह की सेना के साथ घनघोर युद्ध प्रारम्भ हो गया। गुह बंदी बना लिये गये। कौतुकी भगवान श्रीराम ज्यों ही युद्ध देखने की इच्छा से गुहराज के सामने पड़े, गुह ने हाथ जोड़कर दण्डवत प्रणाम किया।
प्रभु के पूछने पर उसने बताया, प्रभो, मेरे पूर्वजन्म की कथा आप सुनें। मैं पूर्व जन्म में महर्षि वसिष्ट का पुत्र वामदेव था। एक बार राजा दशरथ अन्धक मुनि के पुत्र की हत्या का प्रायश्चित्त पूछने हमारे आश्रम में पिता वसिष्ठ के पास आये, पर उस समय मेरे पिताजी आश्रम में नहीं थे। तब महाराज दशरथ ने बड़े ही कातर स्वर में हत्या का प्रायश्चित्त बताने के लिये मुझसे प्रार्थना की। उस समय मैंने राम नाम के प्रताप को समझते हुए तीन बार ‘राम राम राम’ इस प्रकार जपने से हत्या का प्रायश्चित्त हो जायगा परामर्श राजा को बतलाया था। तब प्रसन्न होकर राजा वापस चले गये।
इसे भी पढ़ें: भाव और सरलता पर रीझते हैं भगवान
पिताजी के आश्रम में आने पर मैंने सारी घटना उन्हें बतला दी। मैंने सोचा था कि आज पिताजी बड़े प्रसन्न होंगे, किंतु परिणाम बिलकुल ही विपरीत हुआ। पिताजी क्रुद्ध होते हुए बोले, वत्स, तुमने यह क्या किया, लगता है तुम श्री राम नाम की महिमा को ठीक से जानते नहीं हो। यदि जानते होते तो ऐसा नहीं कहते, क्योकि ‘राम’ इस नाम का केवल एक बार नाम लेने मात्र से कोई पातक उप-पातकों तथा ब्रह्महत्यादि महापातको से भी मुक्ति हो जाती है। फिर तीन बार राम नाम जपने का तुमने राजा को उपदेश क्यों दिया? जाओ, तुम नीच योनि में जन्म ग्रहण करोगे और जब राजा दशरथ के घर में साक्षात नारायण श्रीराम अवतरित होंगे तब उन के दर्शन से तुम्हारी मुक्ति होगी।
प्रभो, आज मैं, करुणासागर पतितपावन आपका दर्शन पाकर कृतार्थ हुआ। इतना कहकर गुहराज प्रेम विह्ल हो रोने लगा। तब दया के सागर श्रीराम ने उसे बन्धन मुक्त किया और अग्नि को साक्षी मानकर उससे मैत्री कर ली। भगवान के मात्र एक नाम का प्रताप कितना है यह इस प्रसंग से ज्ञात होता है।
इसे भी पढ़ें: भारत के प्रसिद्ध ग्यारह संत और उनके चमत्कार