पैदा होते ही
माँ की कोख से गिरा
घुटनों के बल
चलते हुए गिरा
दौड़ते हुए गिरा
सड़क पर
साइकिल चलाते हुए गिरा
ग्यारहवीं में फेल होने पर
समाज की नज़रों से गिरा
बेरोज़गार रहने पर
परिवार की नज़रों से गिरा
पिछड़ जाने पर
दोस्तों की नज़रों से गिरा
डूबने से पहले
प्रेम में गिरा
सर्दी में गिरा
बर्फ़ की तरह
बारिश में गिरा
बूँदों की तरह
गर्मी में गिरा
स्वेद की तरह
पतझड़ में गिरा
पत्ते की तरह
खेतों में गिरा
बीज की तरह
फूलों में गिरा
पराग की तरह
पत्तियों पर गिरा
ओस की तरह
रोटी में गिरा
नमक की तरह
गुरुत्वाकर्षण का नियम जानने से पहले
पेड़ों से गिरा फल की तरह
मैं नहीं गिरा
दूध में मक्खी की तरह
दाल में कंकड़ की तरह
धूप में जलन की तरह
पानी में गलन की तरह
हवा में चुभन की तरह
लोग चढ़ते गए
यश, पद, वैभव और
गर्व की ऊँचाइयाँ
मैं गिरता चला गया
अभिमान की तरह
– गोविंद माथुर
इसे भी पढ़ें: सूझ-बूझ कर कदम बढ़ाओ
इसे भी पढ़ें: मुझे दहेज़ चाहिए