Pauranik Katha: शिवपुराण के अनुसार एक बार ब्रह्माजी और भगवान विष्णु में श्रेष्ठ कौन है इसको लेकर बहस हो गई। ब्रह्माजी ने कहा कि उन्होंने संसार की रचना की इसलिए वह सबसे श्रेष्ठ हैं, जबकि भगवान विष्णु ने कहा कि ब्रह्माजी स्वयं मेरी नाभि से उत्पन्न हुए हैं और वह संसार के पालनहार हैं इसलिए वे सबसे श्रेष्ठ हैं। दोनों में काफी वाद विवाद होने लगा युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई। तब भगवान शिव उनके मध्य में एक विशाल ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए जो सूर्य से भी तेज प्रकाशमान था, जिसमें से भयंकर ज्वाला उठ रही थी। ख़म्ब जैसा जिसकी ऊंचाई और गहराई अनन्त थी। भगवान शिव के विषय में तो कहा ही जाता है।

नहिं तव आदि मध्य अवसाना

अर्थात:-जिनका न आरंभ है न बीच और न अंत..

जिसे देख कर भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी चकित होकर उसे देखने लगे।

तभी आकाशवाणी हुई और उस आकशवाणी ने ब्रह्माजी और विष्णु भगवान से कहा कि जो इस ज्योतिर्लिंग का छोर सबसे पहले ढूंढ लेगा वह सर्वश्रेष्ठ होगा। जिसके बाद ब्रह्माजी ने एक हंस का रूप धारण किया और उस विशाल ज्योतिर्लिंग के ऊपरी छोर को ढूंढने ऊपर की और उड़ चले इधर भगवान विष्णु ने ज्योतिर्लिंग का नीचे का छोर ढूंढने के लिए एक कछुए का रूप धारण किया और नीचे की और चल दिये।

ब्रह्माजी को ऊपर जाते हुए एक केतकी का फूल नीचे की और आता हुआ दिखाई दिया। ब्रह्माजी ने केतकी के फूल से पूछा, तुम कितनी ऊपर से आ रहे हो और यह ज्योतिर्लिंग और कितना ऊपर है। इस पर केतकी के फूल ने कहा, मैं तो कई वर्षों से नीचे की और गिर रहा हूँ और जब से देख रहा हूँ इस ज्योतिर्लिंग को छोर तो मैंने कहीं नहीं देखा। यह सुनकर ब्रह्माजी रुक गए और उन्होंने केतकी के फूल से कहा कि वह भगवान विष्णु के समक्ष यह कहें कि उन्होंने ज्योर्तिलिंग का छोर ढूंढ लिया है और मैं इसका साक्षी हूँ, इसके बदले वह उसमें सुगंध भर देंगे। केतकी का फूल ब्रह्माजी की बातों में आ गया।

ब्रह्माजी ने उद्घोष किया कि उन्होंने ज्योतिर्लिंग का छोर ढूंढ लिया है। भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी से पूछा तो ब्रह्माजी ने कहा कि उन्होंने ज्योर्तिलिंग का छोर ढूंढ लिया है। यह केतकी का फूल इसका साक्षी है। केतकी के फूल ने भी बोला कि ब्रह्माजी ने शिवलिंग का छोर ढूंढ लिया। तभी वहां भगवान शिव प्रकट हुए उन्हें पता था ब्रह्मदेव झूठ बोल रहे हैं। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने कहा आप ब्रह्मा होकर झूठ बोल रहे हैं, आप श्रेष्ठ कैसे हो सकते हैं। श्रेष्ठ भगवान विष्णु है और जिस मुख से ब्रह्माजी ने यह बोला उनका वह सिर काट दिया। तब से ब्रह्मदेव पंचमुख से चार मुख के हो गए।

वहीं केतकी के फूल को शाप दिया कि आज से मेरी पूजा से तुमको वर्जित किया जाता है। तब से लेकर आज तक महादेव की पूजा में केतकी का फूल अर्पित नहीं किया जाता। भगवान शिव की पूजा में केतकी का फूल चढ़ाना पाप के समान माना गया है। इसलिए सदैव ध्यान रखना चाहिए कि सावन या कभी भी महादेव की पूजा जब भी कर रहे हों, तब केतकी का फूल अर्पित न करें।

Spread the news