आंख खोल कर देखो अब तो,
बंग बंधु क्या संदेश दे रहे।
कान खुले होते यदि तेरे,
देश विभाजन कभी न होता।।

अभी समय है जागो प्रियजन,
स्वाभिमान कुछ शेष बचा तो।
जाति भेद सब भूलो अपने,
भारत को आजाद बचालो।।

बंगला देश में हुआ है जो भी,
हमने आखों से देख लिया है।
कर्म भूमि से नहीं पलायन,
संघर्षों में जीना सीख लिया है।।

कायर और कपूत न जनमें,
न जयचंद बने कोई अपना।
सावधान! चहुँ ओर दृष्टि हो,
है परिवार वसुधा का सपना।।

उठो, चलो हुंकार लगा दो,
बढ़ो अखंड भारत पथ पर।
गांडीव उठाओ फिर अर्जुन,
कृष्ण विराजित तेरे रथ पर।।

बृजेंद्र

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