बाढ़त गर्मी छुटत पसीना,
भीजत देह के कोना कोना!
पारा चढ़त चुनावी गर्मी,
भला दोस्त से दुश्मन होना।
तीन जून तक बढ़ी है गर्मी,
चार के भीजी खटिया बिछौना!
वकरे बाद में बंटी मिठाई,
होइ जाई फिर राशन दूना।
केहू कुशल केहु मंगल करिहैं,
केहु जइहैं जगदंबक थाने!
आपन घर छानी ना सुधरी,
दुसरेक देखि जरैं सुख चैना।
पहिले पहिले लगिहैं रबड़ी,
वकरे बाद बसियाइल छेना!
राजनीति के चक्कर में भाई,
ना रोवो जाती कै रोना।
जब भी तुहैँ जरूरत लागी,
बुरा वक्त में केहु नाई ताकी!
बाभन, ठाकुर, पिछड़ा, अगड़ा,
साथ रहैं, कुलि लागी सोना।
राजनीति में केहु ना ताकी,
है “गंभीर” विषय सब बाकी!
चोर चोर मउसेरे भाई,
भाई भाई दुश्मन हों ना।
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