हर तरफ दर्द का समन्दर है।
ऐ खुदा कौन सा ये मंजर है।
मुल्क में बेबसी का है पहरा।
और सोया हुआ कलन्दर है।
मुश्किलों से जो हारकर बैठे।
कैसे कह दूँ कि वो सिकन्दर है।
पीर कैसे वो समझे गैरो की।
उसके दिल की जमीन बंजर है।
बात करता था जो मुहब्बत की।
आज हाथों में उसके खंजर है।
प्यार बाँटें चलो ज़माने में।
ज़िन्दगी दोस्तों घड़ी भर है।
साजिशें हैं नवल सभी उसकी।
आज उठता जो ये बवंडर है।