शैलेंद्र कुमार यादव
Kahani: छोटे से कसबे में समीर नाम का एक लड़का रहता था। (Motivational Story) बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति बड़ी दयनीय थी। समीर की माँ कुछ पढ़ी-लिखी ज़रूर थीं, लेकिन उतनी पढ़ाई से नौकरी कहाँ मिलने वाली थी। (Motivational Story) सो घर-घर बर्तन मांज कर और सिलाई-बुनाई का काम करके किसी तरह अपने बच्चे को पढ़ा-लिखा रही थीं।
समीर स्वभाव से थोड़ा शर्मीला था और अक्सर चुपचाप बैठा रहता था। एक दिन जब वो स्कूल से लौटा, तो उसके हाथ में एक लिफाफा था। (Motivational Story) उसने माँ को लिफाफा पकड़ाते हुए कहा, “माँ, मास्टर साहब ने तुम्हारे लिए ये चिट्ठी भेजी है, जरा देखो तो इसमें क्या लिखा है?” माँ ने मन ही मन चिट्ठी पढ़ी और मुस्कुरा कर बोलीं, “बेटा, इसमें लिखा है कि आपका बेटा काफी होशियार है, (Motivational Story) इस स्कूल के बाकी बच्चों की तुलना में इसका दिमाग बहुत तेज है और हमारे पास इसे पढ़ाने लायक शिक्षक नहीं हैं, इसलिए कल से आप इसे किसी और स्कूल में भेजें।”
यह बात सुन कर समीर को स्कूल न जा सकने का दुःख तो हुआ पर साथ ही उसका मन आत्मविश्वास से भर गया कि वो कुछ ख़ास है और उसकी बुद्धि तीव्र है। माँ, ने उसका दाखिला एक अन्य स्कूल में करा दिया। समय बीतने लगा, समीर ने खूब मेहनत से पढ़ाई की आगे चल कर उसने सिविल सर्विसेज परीक्षा भी पास की और IAS ऑफिसर बन गया। समीर की माँ अब बूढी हो चुकीं थीं, और कई दिनों से बीमार भी चल रही थीं, और एक दिन अचानक उनकी मृत्यु हो गयी।
समीर के लिए ये बहुत बड़ा आघात था, वह बिलख-बिलख कर रो पड़ा उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब अपनी माँ के बिना वो कैसे जियेगा…रोते-रोते ही उसने माँ की पुरानी अलमारी खोली और हाथ में उनकी माला, चश्मा, और अन्य वस्तुएं लेकर चूमने लगा। उस अलमारी में समीर के पुराने खिलौने, और बचपन के कपड़े तक संभाल कर रखे हुए थे समीर एक-एक कर सारी चीजें निकालने लगा और तभी उसकी नज़र एक पुरानी चिट्ठी पर पड़ी, दरअसल, ये वही चिट्ठी थी जो मास्टर साहब ने उसे 18 साल पहले दी थी। नम आँखों से समीर उसे पढ़ने लगा“आदरणीय अभिभावक, आपको बताते हुए हमें अफ़सोस हो रहा है कि आपका बेटा समीर पढ़ाई में बेहद कमज़ोर है और खेल-कूद में भी भाग नहीं लेता है।
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जान पड़ता है कि उम्र के हिसाब से समीर की बुद्धि विकसित नहीं हो पायी है, अतः हम इसे अपने विद्यालय में पढ़ाने में असमर्थ हैं। आपसे निवेदन है कि समीर का दाखिला किसी मंद-बुद्धि विद्यालय में कराएं अथवा खुद घर पर रख कर इसे पढाएं। सादर, समीर जानता था कि भले अब उसकी माँ इस दुनिया में नहीं रहीं पर वो जहाँ भी रहें उनकी ममता उनका आशीर्वाद सदा उस पर बना रहेगा! दोस्तों, रुडयार्ड किपलिंग ने कहा है God could not be everywhere, and therefore he made mothers। भगवान सभी जगह नहीं हो सकते इसलिए उसने माएं बनायीं। माँ से बढ़कर त्याग और तपस्या की मूरत भला और कौन हो सकता है?
हम पढ़-लिख लें, बड़े होकर कुछ बन जाएं, इसके लिए वो चुपचाप न जाने कितनी कुर्बानियां देती है। अपनी ज़रूरतें मार कर हमारे शौक पूरा करती है। यहाँ तक कि संतान बुरा व्यवहार करे, तो भी माँ उसका भला ही सोचती है! सचमुच, माँ जैसा कोई नहीं हो सकता!
राहों में भी आसान सफर लगता है,
यह मेरी मां की दुआओं का असर लगता हैं।
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