Gyan Ki Baat: एक साधु थे उनका न कोई आश्रम, न धर्मशाला और न कोई ठिकाना था। जहाँ रात होती वहीं ठहर जाते और भिक्षा से जो मिलता उससे भगवान का भोग लगाते। वृन्दावन की दो गोपियाँ जिन्होंने कभी भगवान के दर्शन नहीं किये न कभी मन्दिर गईं। प्रातः दधि मक्खन गागर में भरकर ले जाती बेचती और अपनी गृहस्थी में मगन रहती। दोनों गोपियों ने यह सुन रखा था कि साधु सन्तों के पास झोली में भगवान रहते हैं। एक दिन दोनों अपना दधि बेचकर यमुना के निकट आयी। वहाँ देखा कि एक साधु अपनी झोली रखकर संध्या वन्दन हेतु स्नान करने गये हैं।
कौतूहल वश पेड़ के नीचे रखी झोली में भगवान हैं, भगवान कैसे हैं इस दृष्टि से दोनों ने चुपके से झोली उठाई और सारा सामान बिखेर दिया। पर भगवान नही मिले। तभी उनकी नजर एक डिब्बे पर पड़ी। डिब्बा खोला तो देखा कि लड्डू गोपाल डिब्बे में बन्द हैं। एक सखी बोली- यही भगवान हैं। दूसरी बोली-कितने निर्दयी हैं ये संन्यासी भगवान को बन्द करके रखा है। पहली सखी- देखो बेचारे भगवान के हाथ पैर सब टेढ़े हो गये हैं। दूसरी- बेचारे बन्द जो रहते है। हाथ पैर हिलाने की जगह भी नहीं है।
अब दोनों ने लड्डू गोपाल को उठाया, बोली भगवान जी अब परेशान न हो अपने हाथ पैर सीधे कर लो और हम दही खिलाते है खा लो भूखे भी होंगे। दोनों ने भगवान की मूर्ति को सीधा करना शुरू किया। भगवान को भी उनकी सरलता पर आनन्द आ रहा था वह भी मुस्कुरा रहे थे। जब वे थक गयी लेकिन हारी नहीं तो भगवान को हारना पड़ा। लड्डू गोपाल की मूर्ति सीधी हो गई। भगवान सीधे खड़े गये। दोनों ने भगवान को नहलाया और दही खिलाया फिर बोली- ‘अब लेटो आराम करो।’ वह सीधी मूर्ति डिब्बे में नहीं जा रही थी।
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तब तक वह महात्मा जी आ गये दोनों डरकर भागी। महात्मा जी ने सोचा कि कुछ लेकर भागी हैं वह उनके पीछे दौड़े लेकिन उन तक पहुँच नहीं पाये। लौटकर झोली देखी तो हतप्रभ रह गये। भगवान लड्डू गोपाल खड़े हंस रहे थे। महात्मा सारी बात समझ गये। वह भगवान के चरणों मे गिर कर रोने लगे। वह खोजते हुए उन गोपियों के घर गये उनके भी चरण पकड़कर रोने लगे। धन्य हो तुम दोनों आज तुम्हारे कारण भगवान के दर्शन हो गये। मैं जीवन भर संग लिए घूमता रहा पर सरल नहीं बन पाया।
कथा का भाव: नवधा भक्ति में सरल भक्ति महत्वपूर्ण है। भगवान भाव और सरलता पर रीझते हैं। हम जीवन में सरलता नहीं ला पाते यही हमारी बिडंबना है।
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