राघवेंद्र प्रसाद मिश्र
गोरखपुर: भद पिटने के बाद गोरखपुर पुलिस (Gorakhpur Police twitter) फरियादियों की समस्याओं का समाधान करने की जगह सोशल मीडिया के जरिए छवि चमकाने में लगी हुई है। बीते महीने ट्विटर पर गोरखपुर पुलिस की तरफ से कैंपेन चलाकर लोगों से पुलिस के कार्यों से संतुष्टि जानने की कोशिश की गई थी। इसमें अधिकतर लोगों गोरखपुर के थानों की कार्यप्रणाली पर असंतुष्टि जाहिर की थी। हालांकि पुलिस ने यहां भी खेल कर दिया और सोशल मीडिया पर संतुष्ट लोगों की संख्या ज्यादा दिखाई गई। लेकिन सवाल यह है कि अगर गोरखपुर पुलिस के कार्य से लोग संतुष्ट हैं, तो मुख्यमंत्री जनता दरबार में पुलिस से जुड़े मामलों को लेकर पहुंचने वाले फरियादी कौन हैं?
राजघाट थानाक्षेत्र में हत्या
इसी तरह के एक मामले का जिक्र हम यहां कर रहे हैं, जो गोरखपुर (Gorakhpur Police twitter) जनपद के राजघाट थाना क्षेत्र का है। अंबेडकरनगर जनपद के अलीगंज थानाक्षेत्र के पश्चिम टांडा निवासी सुरेंद्र कुमार पांडेय (24) की अगस्त, 2019 में राजघाट थानाक्षेत्र में हत्या कर दी गई थी। लेकिन हत्यारों के हाथ बिक चुकी राजघाट पुलिस ने न तो लाश बरामद किया और न ही मुकदमा दर्ज किया। बाद में कोर्ट के आदेश पर अंबेडकर नगर के अलीगंज थाने में मुकदमा दर्ज हुआ। चूंकि मामला राजघाट थानाक्षेत्र का था, इसलिए विवेचना 16 मार्च, 2021 को राजघाट पुलिस को सौंप दी गई। तत्कालीन थानाध्यक्ष विनय सरोज जिन पर हत्यारों को बचाने का आरोप लग रहा था, उन्होंने विवेचना ठंडे बस्ते में डाल दिया। चूंकि मामला कोर्ट में था, इसलिए तत्कालीन थानाध्यक्ष विनय सरोज को कोर्ट ने विवेचना में देरी के लिए भी तलब किया। बावजूद इसके थानाध्यक्ष न तो कोर्ट में पेश हुए और न ही विवेचना रिपोर्ट ही लगाई।
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थानाध्यक्ष (Gorakhpur Police twitter) के तबादले के बाद पीड़ित परिवार को जगी उम्मीद
थानाध्यक्ष (Gorakhpur Police twitter) विनय सरोज के तबादले के बाद पीड़ित परिवार को उम्मीद जगी कि नए थानाध्यक्ष मामले में विवेचना रिपोर्ट लगा देंगे, जिससे सुनवाई की प्रक्रिया आगे बढ़ सकेगी। लेकिन हत्या जैसे जघन्य मामले में राजघाट पुलिस विवेचना रिपोर्ट रोक कर आरोपियों को बचाने की पूरी कोशिश कर रही है। ऐसा करने के पीछे राजघाट पुलिस की क्या मजबूरी है, इसे आसानी से समझा जा सकता है? ऐसे में पीड़ित पक्ष का गोरखपुर से इंसाफ मिलने की उम्मीद टूट रही है। हालांकि गोरखपुर पुलिस की तरफ से सोशल मीडिया में चलाए जा रहे छवि सुधार कैंपेन में इस मामले का उठाया गया था, जिसपर गोरखपुर पुलिस की तरफ से विवेचन में साक्ष्य संकलन करने का जवाब भी दिया गया।
पुलिस (Gorakhpur Police twitter) करीब दो वर्षों से साक्ष्य नहीं जुटा पा रही
गोरखपुर पुलिस के इस जवाब से समझा जा सकता है कि हत्या जैसे गंभीर मामले में जो पुलिस करीब दो वर्षों से साक्ष्य नहीं जुटा पा रही है, वह इंसाफ क्या दिलाएगी? फिलहाल यहां यह कहना गलत न होगा कि पुलिस की इसी कार्यप्रणाली के चलते तमाम प्रयासों के बावजूद अपराध कम होने का नाम नहीं ले रहा है। पुलिस और अपराधियों के इसी तरह के गठजोड़ का नतीजा है कि इंसाफ कोर्ट के चौखट पर पहुंचने से पहले दम तोड़ दे रहा है।
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