दुनिया भीषण अकाल के मुहाने पर खड़ी है। विश्व में यह स्थिति भयंकर सूखा और रूस यूक्रेन युद्ध (global crisis water) के कारण आयी है। दुनिया के अत्यंत विकसित देशों में भी हालात बिगड़ रहे हैं। (food crisis in india) सूखे के कारण (global crisis water) यूरोप, अमेरिका और चीन जैसे बड़े क्षेत्रों की हालत खराब है। बहुस्तरीय अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिति ने भारत को अभी तक बचाया है लेकिन (food crisis in india) भारत के पड़ोस में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में उत्पन्न संकट का सीधा असर भारत पर पड़ना स्वाभाविक है। (global crisis water) हालात बहुत बदतर हैं।
ऐसे में महंगाई और खाद्यान्न संकट के कारण अनेक देश आन्तरिक कलह और अस्थिरता की चपेट में आने वाले हैं। (food crisis in india) भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश मे यह राजनीतिक मुद्दा बना कर खड़ा किये जाने की स्थिति दिख रही है। (food crisis in india) सबसे बड़ा संकट यह है कि ऐसे हालात में यदि पड़ोसी देशों से भगदड़ की स्थिति आएगी तब क्या होगा, क्योंकि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के भूखे लोग (global crisis water) भारत की ओर ही पलायन करेंगे।
वास्तव में हालात भयावह हैं। इस बारे में संयुक्त राष्ट्र भी लगातार चेतावनी दे रहा है। स्थिति अब काबू से बाहर हो रही है। भारत के पड़ोस के देशों की खबरें बहुत चिंताजनक हैं। इस वैश्विक संकट को लेकर एजेंसियां लगातार अवगत करा रही हैं। अभी एक ताजी रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि सोमालिया में अकाल दरवाजे पर खड़ा है और इस बात के ठोस संकेत हैं कि इस साल के अंत तक यह देश में दस्तक दे देगा।
देश में सूखे के कारण हजारों लोगों की मौत हो गई है और यूक्रेन युद्ध के प्रभाव के चलते हालात और मुश्किल हो गए हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मार्टिन ग्रिफिथ ने पत्रकारों से कहा कि सोमालिया यात्रा के दौरान उन्होंने भूख के कारण बच्चों को रोते हुए देखा, जिसके बाद वह बीते कुछ दिन से बहुत दुखी हैं। सोमालिया में जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा हुए सूखे के चलते बीते एक दशक में कम से कम 10 लाख लोग विस्थापित हुए हैं। गौरतलब है कि इथोपिया और केन्या भी इससे व्यापक रूप से प्रभावित हुए हैं। सोमालिया में साल 2011 में भी अकाल की घोषणा की गई थी। माना जाता है कि उस दौरान ढाई लाख लोगों की मौत हुई थी। ऐसा दिख रहा है कि इस बार का अकाल 2011 से भी ज्यादा भयावह होगा।
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इधर अफगानिस्तान में हालात बहुत ही खराब हैं। बहुत पहले ही संयुक्त राष्ट्र (संरा) ने आगाह किया था कि बढ़ती गरीबी से जूझ रहे अफगानिस्तान के 60 लाख लोगों पर अकाल से प्रभावित होने का खतरा मंडरा रहा है। संरा के मानवीय सहायता प्रमुख ने दानदाताओं से अनुरोध किया कि वे आर्थिक विकास के लिए वित्त मुहैया करना फिर से शुरू करें और ठंड के मौसम में अफगानिस्तान की मदद के लिए तुरंत 77 करोड़ अमेरिकी डॉलर मुहैया करें।
मार्टिन ग्रिफिथ्स ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बताया कि मानवीय, आर्थिक, जलवायु, भुखमरी और वित्तीय संकट जैसे कई संकटों का अफगानिस्तान सामना कर रहा है। आपको बता दें कि संघर्ष, गरीबी, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और खाद्य असुरक्षा लंबे समय से अफगानिस्तान की एक दुखद वास्तविकता रही है।
संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में करीब 60 लाख लोगों को भयंकर अकाल का खतरा है। इसके दो प्रमुख कारण हैं चरम मौसम की स्थिति और तालिबान सरकार की नीतियों की वजह से अनिश्चितता।संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायता कार्यों के समन्वयक मार्टिन ग्रिफिथ्स ने अफगानिस्तान में मानवीय सहायता अभियानों की वर्तमान स्थिति के बारे में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक बैठक में बताया यह चेतावनी दी है। ग्रिफिथ्स ने सुरक्षा परिषद को बताया कि अफगानिस्तान की आधी से ज्यादा आबादी को अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए मानवीय सहायता की सख्त जरूरत है।
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ग्रिफिथ्स के मुताबिक पिछले साल अगस्त में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से इस देश में पहले से ही खराब स्थिति और बदतर हो गई है। उन्होंने सुरक्षा परिषद को बताया कि अत्यधिक बेरोजगारी और अत्यधिक गरीबी के कारण लाखों अफगान एक बार फिर अपनी मातृभूमि छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं। इसके अलावा हाल ही में आए विनाशकारी भूकंप और विभिन्न हिस्सों में अचानक आई बाढ़ ने स्थिति को और खराब कर दिया है।
वैश्विक संगठन के मानवीय सहायता निगरानी निकाय के मुताबिक अंतराष्ट्रीय समुदाय अफगान अर्थव्यवस्था को बहाल करने के लिए हर हफ्ते लगभग चार करोड़ यूरो के बराबर वित्तीय संसाधन प्रदान कर रहा है। हालांकि, इस सहायता के संबंध में आम शिकायतें हैं कि तालिबान इस सहायता राशि का एक बड़ा हिस्सा अपने समर्थकों में बांट रहा है। ग्रिफिथ्स के मुताबिक नतीजा यह है कि देश में गरीबी बढ़ती जा रही है और जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति अभी भी समाप्त नहीं हुई है।
उन्होंने कहा कि जहां तक तालिबान सरकार का सवाल है, उसने अभी तक अफगान लोगों के भविष्य के लिए कोई निवेश नहीं किया है और न ही देश के बजट का कोई हिस्सा इसके लिए आवंटित किया है। यूएन के मुताबिक आने वाली सर्दी के दौरान अफगान लोगों की मदद के लिए उसे तत्काल करीब 60 करोड़ यूरो की जरूरत है।
अफगानिस्तान में बड़े पैमाने वाली विकास सहायता, लगभग एक साल से ठप्प पड़ी है, जबकि देश पहले से ही खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के गंभीर स्तर का सामना कर रहा था, और ये हालात ज्यादा बदतर ही हुए हैं।ग्रिफिथ्स ने बताया कि मानवीय सहायता कर्मियों को भी अपने अभियान जारी रखने के लिए, बेहद चुनौतीपूर्ण हालात का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि तालिबान के साथ तालमेल करना बहुत मुश्किल काम है। इस हालात के बारे में एए/वीके (डीपीए, रॉयटर्स) जैसी एजेंसियां लगातार रिपोर्ट कर रही हैं।
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विश्व मे इससे भी बड़ी त्रासदी सूखे ने पैदा कर दी है। लगभग दुनिया ही इसकी चपेट में है। अलग अलग एजेंसियों से जो वैश्विक परिदृश्य सामने आ रहा है वह बहुत ही भयावह है। पश्चिमी अमेरिका में दो झीलें लेक मीड और पावेल सूखे के चपेट में एकदम सिकुड़ गयीं हैं। बीबीसी की 24 अगस्त की रिपोर्ट के मुताबिक वहां व्यापक क्षेत्र में विगत 500 वर्षों का सबसे बड़ा सूखा पड़ा है। वहां कई प्रसिद्ध नदियां सूख गयी हैं। यही हाल चीन का है जहां कई प्रांतों में भीषण सूखा पड़ गया है। मेरी वुहान की मित्र यैन ने बताया कि लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं। अभूतपूर्व लू बह रही है।
यूरोप के दो तिहाई भाग के लिये सूखे की चेतावनी जारी हो गयी है। अवर्षा और लू के चलते गर्मी की खेती हो ही नहीं सकी जिसमें मक्का, सोयाबीन और सूरजमुखी प्रमुख है। नवंबर तक ऐसे ही मौसम की भविष्यवाणी है। फ्रांस की लोईरे नदी सूखती जा रही है। स्पेन में भी बुरी हालत है। वहां के जलाशय इतना सूख गये हैं कि 5000 वर्ष के पहले की चट्टाने पहली बार दिखाई दे गयी हैं।
सर्बिया में दूसरे विश्वयुद्ध के समय दानुबे नदी में जर्मनी के दर्जनों डूबे युद्धपोत पहली बार दिख गये हैं जिनमें गोला बारूद भरा हुआ है। चैक शहर जो जर्मनी की सीमा के पास है नदी का पानी इतना नीचे जा चुका है कि कुछ चट्टानों पर रोमन अम्पायर के वक्त का यह लिखा मिला है कि “यदि मैं दिख गईं तो आंसू बहाओ” मतलब यह वह काललेख है जो आसन्न अकाल की चेतावनी दे रहा है। टेक्सास के डाईनासोर वैली स्टेट पार्क स्थित पलूक्सी नदी का पानी इतना घट चुका है कि 11.3 करोड़ वर्ष की एक डाईनासोर पट्टी दिख गई है। जहां उनके पदचिह्न साफ दिख रहे हैं।
चीन की सबसे लंबी यांगजे नदी खस्ताहाल है। इससे 45 करोड़ लोगों का जीवन यापन जुड़ा है और चीन की एक तिहाई फसल इस पर निर्भर है। यहां की पोयांग झील सूख रही है। यांगजे से जुड़ी नहरों में भी पानी रोक दिया गया है। अफ्रीका के केन्या, सोमालिया और इथोपिया में भीषण सूखा है। यहां के भयावह सूखे से 22 लाख लोगों का जीवन संकटग्रस्त हो चुका है। आखिर इससे क्या पूर्वाभास हो रहा है, यह चिंता का विषय होना चाहिए। विश्व में अनाज की कमी की भीषण विभीषिका उत्पन्न होने वाली है। मंहगाई आसमान छूयेगी। दुर्भिक्ष और अकाल पड़ेगा। सावधान हो कर तैयार रहने का समय है।
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उधर जर्मनी की विदेश मंत्री अन्नलेना बेरबॉक ने कहा है कि वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों के बढ़ते मूल्यों के लिए यूक्रेन में चल रहे रूस का सैन्य अभियान उत्तरदायी है। यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध को रूस द्वारा षडयंत्रपूर्वक “अनाज युद्ध” में बदल दिया गया है। इसका परिणाम कई देशों पर, विशेषकर अफ्रीकी देशों पर हो रहा है। बेरबॉक ने भीषण वैश्विक अकाल की संभावना की चेतावनी दी है। हालांकि, रूस ने इस वक्तव्य का तुरंत खंडन करते हुए कहा कि, अकाल के पीछे पाश्चात्य देशों द्वारा रुस पर लगाए गये निर्बंध उत्तरदायी हैं। दूसरी ओर पिछले सप्ताह, संयुक्त राज्य अमेरिका ने कहा कि, यूक्रेन से विश्वभर में प्रति माह 50 लाख टन अनाज निर्यात किया जाता था। लेकिन रूस द्वारा सभी यूक्रेनी बंदरगाहों को बंद करने से सब जगह अन्न का संकट निर्माण हुआ है। इससे कई देश भूख से पीड़ित हो सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)