मैंने महबूब को चांद,
कह क्या दिया…!
चांद कल रात हमसे,
ख़फ़ा हो गया!
चांद तनकर ये बोला कि,
सुन ”अजनवी”
तेरे महबूब में ऐसी,
क्या है ख़ुबी…?
मैं कहा चांद तुमको,
पता ही नही।
मेरा महबूब है चांद,
से भी हंसी…!
जिसके अधरों पे मुस्कान,
खिलते सदा…!
जिसके चेहरों पे चमके,
सदा ही ख़ुशी।
चांद को बात मेरा बुरा,
लग गया…!
चांद कल रात हमसे,
ख़फ़ा हो गया…!
सब ये कहते चमक,
तेरी खुद की नहीं,
दाग ज़्यादा नहीं फिर भी,
है तो सही…!
मेरा महबूब तो चांद,
बेदाग है…!
कोई महबूब सा,
इस जहां में नहीं।
ना हो मुझपे भरोसा,
तुम्हें चांद तो…!
पूछ लेना सितारों से,
तुम जो कभी।
सिर्फ, तारीफ़ मिलकर,
करेंगे सभी…!
फिर ना पूछोगे हमसे,
की क्या है ख़ूबी…!
इतना सुन बादलों में,
दफा हो गया।
चांद कल रात हमसे,
ख़फ़ा हो गया…!
इसे भी पढ़ें: बारिश की बूँदे