Satya Prakash Tripathi
सत्य प्रकाश त्रिपाठी “गंभीर”

प्रकृति भी रंग पसारे है,
नववर्ष तुम्हारा आलिंगन!
फसलें भी स्वर्ण सरीखी सी,
आतुर हैं आने को आंगन।

जो बीत गईं वो यादें हैं,
आएंगी वो है नव जीवन!
बीतीं तो रंग गुलाल उड़े,
आने पर खिल उठे वन उपवन।

फागुन में पत्ते बिखर गए,
कुछ छिटक गए कुछ निखर गए!
पेड़ों में कोपल फूट गए,
पौधों में बीजों के दर्शन।

आमों के बौंर बौराए हैं,
सेमर चटक लाल कलियां!
महुआ चूने को आतुर है,
घोसलों में पनप रहा जीवन।

कुछ लोग आधुनिक हैं अंधे,
उनकी परिभाषा बदल गई!
अपनी मां को हैं भूल रहे,
मां मान लिया मां की सौतन।

“न्यू” को हमने “नव” मान लिया,
“ईयर” उच्चारित कई अर्थ!
जिसके उच्चारण भ्रमित करें,
क्यूं करें हम उसका अभिनंदन?

हम हिंदू हिंदुस्तानी हैं,
है हिंद हमारा निज गौरव!
उसके नव वर्ष मनाएं क्यूं,
जो रहा हमारा ही दुश्मन।

हम मूल के प्रति “गम्भीर” बनें,
भक्ती में देश श्रेष्ठतम है!
संपूर्ण विश्व में श्रेष्ठ हैं यहां,
सभ्यता संस्कृति का संगम।

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