नई दिल्ली: सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज के निदेशक डॉ. जेके बजाज ने विकास के वर्तमान मॉडल पर चर्चा करते हुए कहा है कि भारत को आत्मनिर्भर बनाना महात्मा गांधी का सपना था और इस ‘आत्मनिर्भर भारत’ (atmanirbhar bharat) का निर्माण तभी होगा, जब गांवों का विकास होगा। उन्होंने कहा कि गांधीजी का आर्थिक दर्शन स्थिर नहीं, बल्कि जीवंत और व्यापक रहा है। यह तकनीक केंद्रित नहीं है, बल्कि जन केंद्रित है। इसलिए उन्होंने गांवों के आर्थिक विकास पर ध्यान दिया। डॉ. बजाज शुक्रवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘शुक्रवार संवाद’ को संबोधित कर रहे थे।
‘गांधी का अर्थशास्त्र’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. बजाज ने कहा कि अहिंसा, स्वराज और सत्याग्रह की बात करने वाले महात्मा गांधी ने आर्थिक समानता और विकास की जो तस्वीर हमें दिखाई है, वह आज के दौर में ज्यादा प्रासंगिक और उपयोगी है। केंद्रीकृत उद्योगों के बजाय उन्होंने विकेंद्रीकृत छोटे उद्योगों का सुझाव दिया। उनका मानना था कि हर व्यक्ति स्वयं में एक उद्योग बने। वह स्वावलंबन की बात करते थे। उन्होंने बड़े उद्योग की बजाए हर व्यक्ति को अपना काम करते हुए कुछ न कुछ उत्पादन करने की सलाह दी थी।
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डॉ. बजाज के अनुसार गांधीजी की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था धर्म, प्रेम, नैतिकता और ईश्वरीय भावना पर आधारित है। उन्होंने ‘नर सेवा’ को ‘नारायण सेवा’ मानकर दलितों और दरिद्रों के उद्धार को अपने जीवन का ध्येय बनाया। गांधी के अनुसार अहिंसा नैतिक जीवन जीने का मूलभूत तरीका है। यह सिर्फ आदर्श नहीं, बल्कि यह मानव जाति का प्राकृतिक नियम है।
डॉ. बजाज ने कहा कि महात्मा गांधी ने इंसान की लगातार बढ़ती इच्छाओं को आधुनिक सभ्यता के लिए खतरा बताया था। अपनी पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ में उन्होंने लगातार हो रही खोजों के कारण पैदा हो रहे उत्पादों को संपूर्ण मानवता के लिए नुकसानदायक बताया था। गांधीजी का दृष्टिकोण था कि लालच और जुनून पर अंकुश लगना चाहिए और टिकाऊ विकास का केंद्र बिंदु समाज की मौलिक जरूरतों को पूरा करना होना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन डीन (छात्र कल्याण) प्रो. (डॉ.) प्रमोद कुमार ने किया एवं स्वागत भाषण डीन (अकादमिक) प्रो. (डॉ.) गोविंद सिंह ने दिया। धन्यवाद ज्ञापन आईआईएमसी, कोट्टायम कैंपस के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. अनिलकुमार वाडावतूर ने किया।
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