नई दिल्ली। अहिंसा की बात करने और उस पर चलने में बड़ा फर्क है। पूरी जिंदगी अहिंसा परमो धर्म का संदेश देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी खुद हिंसा के शिकार हुए थे। गाँधी की 30 जनवरी, 1948 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जिसे आज पूरा देश शहीद दिवस के रूप में मनाता है। देश में गांधी की हत्या के बाद जो लोगों में जो आक्रोश फैला उसकी कीमत कई निर्दोष लोगों को अपनी जान गवां कर चुकानी पड़ी। अहिंसा के पुजारी गांधी के समर्थक हिंसा पर उतर आए। संघ से जुड़े लोगों के जगह-जगह साथ मारपीट हुई। पूरा देश हिंसा की आग में झुलसने लग गया था। पूरे देश में जगह-जगह मारपीट व पथराव की घटनायें होने लगी थीं। उस समय ब्राहमणों के खिलाफ प्रयोजित हिंसा का दौर निकल पड़ा था। इस तरह की घटना से गांधी के विचारों को मानने वाले काफी आहत हुए थे। लेकिन उस समय इस हिंसा को अहिंसा के रस्ते पर लाने का कोई नहीं सूझ रहा था। पूरे देश में आरएसएस के प्रति लोगों में गुस्सा था। स्वयंसेवकों को सरेआम पर मारा-पीटा जा रहा था।
वहीं महात्मा गांधी की हत्या के बाद हिंसा का सबसे ज्यादा भयानक रूप महाराष्ट्र में दिखाई दिया था। यहां चितपावन ब्राह्मणों को चुन-चुन कर मारा गया, उनकी हत्या की गई। फिलहाल इसकी पुष्टि न तो सरकार की ओर से की गई और न ही उनके परिवार व परिजनों का कोई रिकॉर्ड ही उपलब्ध है। इस तरह अहिंसा के पुजारी के साथ हिंसा हुई और उनकों मानने वाले अहिंसा का रास्ता त्याग कर हिंसा पर उतर आये। गांधी जी ने अपने पूरे जीवन में कभी अहिंसा का रास्ता नहीं छोड़ा। और यही वजह है कि गांधी को मार दिया गया लेकिन उनके विचार आज भी लोगों के अंदर जिंदा है। गांधी के अनुयायी उस समय भी थे और आज के दौर में भी हैं। लेकिन गांधी के बताए मार्ग पर चलने की बात की जाये तो गांधीवादी न तो उस समय उनके बताए रास्ते पर चले और न आज ही चलने की कोशिश करते हैं।
गांधी मरकर भी आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं। लेकिन लोग गाँधी को अपनाने की जगह उनका प्रयोग करते आ रहे हैं। लोग खुद तय करने लगे हैं कि उन्हें कितना गाँधी के विचारों पर चलना है। बताते चले कि 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने ऑटोमैटिक पिस्तौल से भरी भीड़ में महात्मा गांधी को गोली मार दी थी। गांधी की हत्या के बाद भड़के आक्रोश की आग इतनी भयानक थी कि इस हिंसा में 50 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। बताया जाता है कि नाथूराम गोडसे चितपावन ब्राह्मण थे, जिसके चलते मराठाओं ने चितपावनों ढूंढ-ढूंढ कर हमले करने लगे। महाराष्ट्र में सीधे तौर पर ब्राह्मणों और मराठाओं के बीच दंगे हुए थे।
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