नई दिल्ली: बंदूक की नोक पर अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने वाले तालिबान से रहम की उम्मीद करना बेमानी है। क्योंकि जिस तरह खूंखार चेहरों को जिम्मेदारी दी जा रही है, उससे यह साफ हो गया है कि इस बार तालिबान पिछली बार की अपेक्षा काफी खूंखार होगा। वैसे तालिबान के कब्जे के बाद से यहां से जिस तरह बर्बरता की खबरें आ रही हैं, उससे हर किसी की तालिबान के शासन की याद ताजा हो गई हैं। ऐसे में यह आशंका प्रबल हो गई है कि तालिबान 2 के नेता तालिबान 1 की अपेक्षा काफी क्रूर शासन करेंगे। हालांकि शुरुआत में तालिबान ने यह साबित करने का प्रयास किया था कि वह पहले वाला तालिबान नहीं रहा। लेकिन जैसे जैसे समय बीत रहा है, तालिबान अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है।
तालिबान के नेतृत्व पर अगर गौर करें तो इनसे सहूलियत बरते जाने की उम्मीद टूटती दिख रही है। बता दें कि इस समय तालिबान का नेतृत्व धार्मिक मौलवी हैबतुल्लाह अखुंदजादा कर रहा है। यह वर्ष 2016 में तालिबान का प्रमुख रहा है। अखंदजादा अधिकतर मजहबी मामलों को देखता है। उसने दोषी पाए गए हत्यारों और अवैध संबंध रखने वालों को मौत और चोरी करने वालों के हाथ काटने के आदेश दिए थे। वहीं मुल्ला बरादर तालिबान के नेता मुल्ला मोहम्मद उमर के सबसे भरोसेमंद सिपाही और डिप्टी रह चुका है। उसने अफगान बलों के खिलाफ खूंखार हमलों का नेतृत्व किया। इतना ही नहीं वर्ष 2018 में कतर में जब अमेरिका से बातचीत करने लिए तालिबान का दफ्तर खुला तो उसे तालिबान राजनयिक दल का प्रमुख बनाया गया था।
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हैबतुल्लाह अखुंदजादा
अमेरिकी ड्रोन हमले में वर्ष 2016 में अखतर मोहम्मद मंसूर के मारे जाने के बाद हैबतुल्लाह अखुंदजादा को तालिबान का प्रमुख बनाया गया। अखुंदजादा ने 1980 के दशक में सोवियत संघ के खिलाफ अफगानिस्तान के विद्रोह का कमांडर भी रह चुका है। लेकिन उसकी पहचान सैन्य कमांडर की अपेक्षा धार्मिक विद्वान के रूप में अधिक है। हैबुतुल्लाह अखुंदजादा तालिबान शासन के दौरान वर्ष 1996 से 2001 के बीच न्यायिक प्रणाली का भी प्रमुख रह चुका है। वह अफगान तालिबान का प्रमुख बनने से पहले शीर्ष नेताओं में शामिल रह चुका है और धर्म से जुड़े तालिबानी आदेश वही देता आ रहा है।
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