कानपुर: गंगा-जमुनी तहजीब का हवाला देकर सच न बोल पाने वालों के मुंह पर एक बार फिर करारा तमाचा लगा है। यूपी एटीएस ने धर्मांतरण कराने वाले दो मौलानाओं को गिरफ्तार कर इस पूरे रैकेट का पर्दाफाश किया है। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है, ऐसे ढेरों मामले हमारे सामने पड़े हैं, जिसमें बड़ी संख्या में हिंदुओं ने धर्मपरिवर्तन किया है। बस दिक्कत तब पैदा होती है जब यहां हिंदू हिंदुत्व की बात करने लगता है। बेशर्मी का आलम यह है कि एक समुदाय के लोग तो ऐसे हैं जो अपनी मांग मनवाने के लिए धमकी तक दे डालते हैं कि अगर उनकी मांगे नहीं मानी गईं तो वह धर्मांतरण कर लेंगे। इसी से समझा जा सकता है कि हमारे समाझ में कैसी-कैसी सोच के लोग पड़े हैं। धर्मांतरण कराने में लगे लोग ऐसे लोगों का फायदा उठाकर आदित्य से अब्दुल्ला बनाने में लगे हुए हैं।

कानपुर से कुछ इसी तरह का मामला सामने आया है। यहां के काकादेव हितकारी नगर मोहल्ले का मूक-बधिर युवक दिल्ली के धर्मांतरण गिरोह का शिकार हो गया है। धर्मांतरण के बाद जब घर लौटा तो वह आदित्य की जगह अब्दुल्ला बन चुका था। चोरी छिपे घर में वह पांच वक्त की नमात भी अदा करने लगा। घर वालों को इसकी भनक तब लगी जब वह 10 मार्च को अचानक घर से लापता हो गया। परिजनों ने 12 मार्च को कल्याणपुर थाने में उसकी गुमशुदगी दर्ज कराई। इसके बाद पुलिस ने उसे खोजना शुरू किया। एटीएस द्वारा धर्मांतरण कराने वाले मौलानाओं की गिरफ्तारी के एक दिन पहले आदित्य गुप्ता अब्दुल्ला बनकर घर लौट आया है। आदित्य के परिजन उससे किसी को मिलने नहीं दे हरे हैं।

एटीएस ने दो लोगों को किया गिरफ्तार

यूपी पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने सोमवार को मूक बधिरों व गरीब लोगों का धर्मांतरण कराने वाले एक गिरोह का पर्दाफाश किया है। एटीएस ने धर्मांतरण कराने वाले गिरोह के दो सदस्यों दिल्ली निवासी मुफ्ती काजी जहांगीर आलम कासमी और मोहम्मद उमर गौतम को लखनऊ से धर दबोचा है। यूपी एटीएस की माने तो यह गिरोह मूक बधिर और कमजोर आय वर्ग के लोगों को धन, नौकरी व शादी का लालच देकर धर्म परिवर्तन करने के लिए राजी करते थे। इसके लिए इन्हें आईएसआई सहित अन्य विदेशी एजेंसियों से फंडिंग की जा रही थी। अब तक यह गिरोह करीब एक हजार लोगों का यधर्मांतरण कर चुका है। एटीएस को उनके कब्जे से विदेशी फंड से जुड़े दस्तावेज भी बरामद हुए हैं।

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बेटे के लिए मां ने सीखी थी मूक-बधिर भाषा

बेटा कैसा भी हो वह मां के कलेजा का टुकड़ा होता है। आदित्य से अब्दुल्ला बने की मां के साथ भी कुछ ऐसा है। बताया जाता है कि जब आदित्य का जन्म हुआ तो घरवाले बहुत खुश थे। उसकी मां लक्ष्मी की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। परिवार वालों के साथ उसकी मां भी उससे जुड़े अपने सपने संजोने लगी। वह ख्वाब पालने लगी की बेटा बड़ा होकर यह बनेगा, यह करेगा। लेकिन उसके इन सपनों पर तब पानी फिर गया जब उसे पता चला कि आदित्य मूक-बधिर है।

लेकिन मां की ममता के सामने इतना बड़ा वज्रपात भी कुछ नहीं कर पाया उसने बेटे की अच्छी परवरिश के लिए लक्ष्मी ने साइन लैंग्वेज (मूक-बधिर भाषा) सीख डाली। इतना ही नहीं एक मूक-बधिर स्कूल में नौकरी भी करने लगी। इस तरह वह इस भाषा में इतनी पारंगत हो गईं कि लोगों की मदद के लिए उन्होंने वीडियो भी अपलोड कर डाले। लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। जिस बेटे के लिए एक मां ने इतना संघर्ष किया वही बेटा धर्मांतरण गिरोह के बहकावे में आकर आदित्य से अब्दुल्ला बनने में कोई संकोच नहीं किया।

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