Shyam Kumar
श्याम कुमार

इतना ही लो प्याली में,
समा न जाओ नाली में।

चुंबन-जैसी लगती है,
प्यार भरा है गाली में।

जोश दिला देती है वो,
इतनी ताकत ताली में।

वृक्षों में जीवन का सार,
जीवन है हरियाली में।

बवासीर मुंह में उसके,
गाली भरी दुनाली में।

बाहर विचरण करते हैं,
नहीं मजा घरवाली में।

छेद कर रहे हैं वो ‘श्याम’,
खाते हैं जिस थाली में।

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