आज काल का चक्र कह रहा
तुमको जगना उठना ही होगा।
छोड़ जातीयों के कुचक्र भेद
ले राष्ट्र भाव जुटना ही होगा।।
राम कृष्ण के वंशज हम सब
तुलसी, वाल्मीकि, रविदास हमारे।
गुरु नानक, रामानन्द, कबीरा
भगवान बुद्ध महावीर हैं न्यारे।।
विक्रमादित्य अशोक हैं पूर्वज
है राणा शिवा भोज की थाती।
शिव कैलाश से राम सेतु तक
एकात्म तत्व व्यक्त बहु भांती।।
सबका योग सम्मान सभी का
मिल भूले विसरे सबको जोड़ें।
बनें शृंखला बद्ध हम सभी
छाई विभ्रम कारा को तोड़ें।।
करें पराक्रम कर्तव्य भाव ले
भारत को फिर ‘भा’रत कर दें।
तोड़ विखंडन के कुचक्र को
एकात्मराष्ट्र है शुभ गुण भर दें।।
– बृजेंद्र
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