भारत फिर से जाग रहा है
विघटन दुर्गुण भाग रहा है।
जगे रक्त वंश संबन्ध पुराने
पुरखों का युग मांग रहा है।।
तुर्क मुगल हैं नहीं हमारे
मति भ्रम से इनसे हम हारे।
खूब लड़ाया अपनों से ही
बाँध दिया है अली सहारे।।
राम कृष्ण के वंशज हैं हम
राणा शिवा हैं नेत्र के तारे।
संकट में हम बिछुड़ गए थे
अपनों में हम बने वेचारे।।
आज पुनः स्मृति अब जागी
भारतीय संस्कृति के अनुरागी।
फिर भूले बिछुड़े भाव सजेंगे
शांति सुकृति सद्गुण के रागी।।
ये मुल्ला और मोलवी झूठे
हैं जहर घोलते जो दीन रात।
जिस अंधकार में हमें धकेला
है निशा मिटी आया प्रभात।।
फिर भारत गौरव आयेगा
जागृत वृहत्तर भारत पुनीत।
वसुधा होगी परिवार एक
घर घर ज्योति होगी सुनीत।।
– बृजेंद्र
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