स्त्रियों की स्थिति अब बहुत बेहतर हो चुकी है
जब-जब मुझे ऐसा कोई भ्रम होने लगता है
मैं चला जाता हूँ सार्वजनिक शौचालय
जहां दरवाज़ों के पीछे

अनजान स्त्रियों के फ़ोन नंबर लिखे मिलते हैं
या शासकीय भूलेख कार्यालय
जहां दस में से नौ भूखंडों के पट्टे पुरुषों के नाम हैं
या कोई भी पोर्न वेबसाइट

जहां स्त्री की अनुमति बिना
उसके नग्न वीडियो का सेवन किया जाता है
या रात में चलती बस, ऑटो, और मेट्रो
जिनमें ढूँढे भी स्त्रियाँ नहीं दिखतीं

या चला जाता हूँ चूल्हे में
जहां निकाल देती है स्त्रियाँ
अपना समस्त जीवन
एक कुर्सी या स्टूल के बिना
या तो खड़े या घुटनों के बल बैठे हुए

मैं चला जाता हूँ पुरुष-हृदय में
जिसने अभी भी स्त्री को बराबर नहीं स्वीकारा
उसे पावन स्थान बहुत दिये
पर नहीं दिये बराबर से बैठने के लिए
एक कुर्सी या स्टूल

स्त्रियों की स्थिति अब बहुत बेहतर हो चुकी है
सुनते ही मैं चला जाता हूँ
हर उस स्त्री के पास
जिसे अपनी स्थिति बेहतर करने के लिए
पुरुषत्व धारण करना पड़ा

अभिषेक शुक्ला

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