मुनिया कॉलेज जाना चाहती थी
मगर “गोल-गोल फूली हुई रोटी बनाना सीख लेना भी
कोई पढ़ाई लिखाई से कम है क्या?”
ऐसा आजी कहती है।
बबुआ सपना बहुत देखता है!
“अरे बखत रहते काम मिल गया
दुई रोटी कमात है फिर काहें कहीं और हाथ पैर मारना..”
बाबूजी उसकी नासमझी पर बरसे।
कितने सपने इसके नीचे ही दब जाते हैं
पच्चीस-तीस ग्राम की रोटी
इतनी भारी होती है!
मुनिया रोटी बनाना सीख गई है
अम्मा बोली बाबूजी से, “ब्याह दो!”
बबुआ रोटी कमाने लगा है
घर पर बात चली “ब्याह दो!”
किसी ने ये सोचना तक मुनासिब नहीं समझा कि
उन दोनों को अपनी-अपनी परीक्षाओं में
अभी हल करने को बाकी थे और भी कई सारे प्रश्न…
रोटी केवल भूख ही नहीं मारती
दुखों का हक भी मार लेती है।
मुनिया रोटी बनाती है
बबुआ रोटी कमाता है
समझ नहीं आता
हम रोटी को निगलते हैं या रोटी हमें…?
– मायशा
इसे भी पढ़ें: एक प्रश्न मन
इसे भी पढ़ें: ख्वाबों को टालते लड़के