समय का पहिया
बहुत तेज चल रहा है।
पुराने आदर्शों का कबाड़
तेजी से गल रहा है।
वह दकियानूस है,
उसको दिखाई नहीं देता।
उसके कान हैं,
पर सुनाई नहीं देता।
मूल्यों का ठौर
पूरी तरह बदल रहा है।
नई पीढ़ी का सूरज
पश्चिम से निकल रहा है।
पश्चिमी दर्शन जिन्दाबाद,
भारतीय दर्शन मुर्दाबाद।
भोगवादी दर्शन हमारी आस है,
विवेकानन्द-दर्शन बकवास है।
झूठ, फरेब, स्वार्थ,
ये है मेरे परमार्थ।
नमकहरामी, धोखा, ठगी,
इन्हीं से है मेरी दुनिया सजी।
प्रैक्टिकल वर्ल्ड में रहता हूं,
अपनी हर मनमानी करता हूं।
सब चलता है, चलने दो,
जो मिलता है, मिलने दो।
रात के बज गए पौने दो,
जो होता है, होने दो।
बुरा होता है,
भावनाओं का जाल।
भला होता है,
उपभोग का माल।
उन्मुक्त चुम्बन रहे आबाद,
लिव-इन-रिलेशन जिंदाबाद।
वही करता हूं,
जो उसे पसंद नहीं।
वह नहीं करता,
जिसमें मुझे आनन्द नहीं।
नए दौर की यह मुनादी है,
हमें विचारों की आजादी है।
लड़के आपस में,
गले मिल सकते हैं।
साथ-साथ आगोश में
खिल सकते हैं।
तो लड़के लड़कियों से
क्यों न लिपटें?
क्यों न आपस में चिपककर
दारू गटकें?
अब न होगा कोई बंधन,
न होगा कोई चिंतन।
जब चाहे, जो करूं,
जीवन में नए रंग भरूं।
खुलकर करूंगा ऐश,
हर तमन्ना होगी कैश।
दुख के दिन होंगे दूर,
सुख के दिन होंगे भरपूर।
वह पूरब, मैं पश्चिम हूं,
वह उत्तर, मैं दक्खिन हूं।
दोनों कभी मिल नहीं सकते,
एक साथ कभी चल नहीं सकते।
इसलिए पूरा,
कर लिया है हर काम।
हटाने का
कर लिया है इंतजाम।
यातनाओं पर यातनाएं,
दे रहा हूं।
जानलेवा वेदनाएं,
दे रहा हूं।
दर्द के घूंट पिला रहा हूं,
खून के आंसू रुला रहा हूं।
नये दौर का,
चमत्कार कर रहा हूं।
अपने बाप के मरने का,
इंतजार कर रहा हूं।
(रचनाकार वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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