कमल को केवल भगवा पसंद है। यह भगवा केवल उत्तर प्रदेश में पाया जाता है। उत्तर प्रदेश में ही अयोध्या, काशी और मथुरा भी है। उत्तर प्रदेश में ही भगवा सरकार अपनी पूरी क्षमता से काम कर रही है। भाजपा के अलंबरदारों को पता नहीं क्यों नहीं समझ में आ रहा कि भगवा त्याग कर या भगवा के साथ प्रपंच कर उसे कुछ हासिल नहीं होगा। बेवजह बजरंग दल को बजरंगबली से क्यों जोड़ना था। कर्नाटक में सरकारी भ्रष्टाचार था, यह स्वीकार करना चाहिए। उत्तर प्रदेश में जो भी दिख रहा है उसको भी स्वीकार करना चाहिए। भाजपा को यह भी स्वीकार करना चाहिए की यह चुनाव भाजपा बनाम भाजपा ही था, जिसमें उत्तर प्रदेश ने कमल को खिलाकर बचा लिया और कर्नाटक में कमल भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। बेवजह बजरंगबली को घसीट कर उनको भी नाराज कर दिया गया।
एक तरफ दिल्ली वाली भाजपा कर्नाटक में चुनाव लड़ रही थी, जिसमें टोपी, दाढ़ी सब थी। सबका विश्वास, पसमांदा और न जाने क्या-क्या था। विकास, जनधन योजना, सड़कें, पुल, एक्सप्रेस वे, सबको राशन, उज्जवला सिलेंडर, सबको छत, सब नलों में पानी जैसी बातें याद दिलाई जा रही थीं। दूसरी तरफ सीएम योगी वाली भाजपा उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव लड़ रही थी। इसमें हर काम करते हुए, सड़के बनाने के बावजूद, विकास करने के बावजूद, रिकॉर्ड इनवेस्टमेंट लाने के बावजूद, इंडस्ट्री लगवाने के बावजूद, रोजगार देने के बावजूद न तो सीएम ने और न ही बाकी संगठन ने इस नाम पर चुनाव लड़ा।
कर्नाटक में वोट मांगा गया, डबल इंजन सरकार के नाम पर। यूपी में वोट मांगा गया माफिया का इंजन ध्वस्त करने के नाम पर। माफिया सिर्फ अतीक नहीं है। माफिया है दंगा करने वाले, फतवे देने वाले, लव जिहाद वाले, पत्थरबाज, सर तन से जुदा गैंग, सीएए विरोधी, किसान आंदोलन, पहलवान आंदोलन के नाम पर अशांति फैलाने वाले। बात कर्नाटक में भी आखिर में बजरंग बली की हुई, केरल स्टोरी के नाम पर लव जिहाद की भी, लेकिन वह फोर्स नहीं था, जो योगी आदित्यनाथ की बात में यूपी की जनता महसूस कर रही है। कर्नाटक और यूपी में अंतर यह था कि कर्नाटक की तरह यूपी में किसी ने टोपी वाले को सीएम योगी के कान में खुसर-पुसर करते नहीं देखा।
पीएम मोदी के योगदान पर कोई सवाल नहीं है। उन्होंने जो कर दिया, वह नये भारत, हमारे भारत की वह तस्वीर है, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी। वह निश्चित रूप से नए भारत के महानायक है। सनातन के महायोद्धा हैं, लेकिन देश की राजनीति चुनाव से निकलती है। चुनाव में एक तरफ वकील हैं, जज हैं, लिबरल हैं, वामपंथी हैं, जिहादी हैं, चर्च हैं, नक्सली हैं, जिन्हें किसी की सरकार से कोई फर्क नहीं पड़ता। दूसरी तरफ आजादी के अमृत काल में आजाद भारत में अपनी बेटी के सड़क पर निकलने की आजादी, अपने घर को किसी जिहादी के हाथ न बेचने की इच्छा, कारोबार करने, जीने के अधिकार के लिए तरसते हिंदू हैं। ये वे हिंदू हैं, जो अपने अधिकार के लिए पत्थर नहीं मारते, लेकिन वे पत्थर मारने की कलाई पकड़ने वाली भाजपा को देखना चाहते हैं।
अब आगे का रास्ता भाजपा को तय करना होगा, सड़क, बिजली पानी, इनवेस्टमेंट, सबका साथ-सबका विकास की राह पर चलना है या फिर सबका विकास, लेकिन तुष्टिकरण नहीं। पसमांदा के नाम मुसलमानों में वोट ढूंढने की कोशिश करने वाली भाजपा या फिर देश विरोधी पत्थरबाज को सबक को सिखाने वाली भाजपा। आप कितने भी चुनाव लड़ लीजिए क्या पीएम मोदी को वोट विकास के लिए नहीं दिया था, फिर कांग्रेस क्यों नहीं। विकास तो उसने भी किया था, आज़ाद भारत में हुआ क्या था, सरकारी अस्पताल, सरकारी स्कूल दोनों अच्छे थे, प्राइवेट में सिर्फ़ बड़े लोग जाते थे। फिर काग्रेस को क्यों दिल्ली की गद्दी से हटाया।
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यह समय गंभीर मूल्यांकन का है कि कर्नाटक का सिलसिला मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी चल निकला तो भारत कहां खड़ा होगा। देश की जनता ने तो भाजपा का अर्थ ही भारत मान लिया था और संसद से विधानसभाओं तक केवल कमल परोस दिया था। भाजपा खुद का मूल्यांकन करे कि जनता कमल से किनारा क्यों करने लगी। कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ तो है। यदि ऐसा नहीं होता तो अकेले दम पर योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य के नगरीय चुनावों में भाजपा के विजयरथ को यह मुकाम नहीं दे पाते। कर्नाटक में कान कट गया, लेकिन उत्तर प्रदेश में एक अकेला भगवाधारी नाक पर आंच तक नहीं आने दिया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
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