Gonda News: उनकी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये बाते किताबी हैं। सरकारी योजना और उसके लाभार्थियों के बीच के अंतर का खेल कोई नया नहीं बल्कि काफी पुराना हो चुका है। (Rozgar Sevak Kiran Singh) समाज के हर क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता दर्ज हो चुकी है। इसके लिए पूरा प्रयास भी जारी है, बावजूद इसके महिलाएं अपने दायित्वों को लेकर उदासीन बनी हुई हैं। पद पर नाम महिला का होता है, लेकिन उनका काम कोई और ही करता है। (Rozgar Sevak Kiran Singh) महिला ग्राम प्रधान चुन ली जाती है, लेकिन प्रधानपति के तौर उनके पति उनका काम देखने लगते हैं। हैरत की बात यह है जनता से लेकर अधिकारी तक महिला प्रधान के पति को प्रधान समझने लगते है। इसी तरह से शिक्षा मित्र आदि पदों पर भी महिला की जगह पुरुषों को काम करते पाया गया है। वहीं गोंडा जनपद के परसपुर विकास खंड के ग्राम सभा विशुनपुर कला में रोजगार सेवक किरन सिंह (Rozgar Sevak Kiran Singh) की जगह उनका काम कोई और देख रहा है।
जानकारी के मुताबिक विशुनपुर कला में रोजगार सेवक के पद पर गांव की किरन सिंह (Rozgar Sevak Kiran Singh) का चयन बहुत पहले हो चुका है। पूर्व प्रधान के कार्यकाल के दौरान किरन सिंह की शादी भी हो गई और वह अपने ससुराल चली गईं। मगर इस पद पर आज भी उनका कब्जा बरकरार है। आलम यह है मनरेगा के तहत होने वाले काम का आकलन किरन सिंह की जगह कोई और कर रहा है।
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इसी तरह इस समय वोटर कार्ड में नाम जुड़वाने का काम चल रहा है। लेकिन यह काम भी किरन सिंह की गांव का एक व्यक्ति कर रहा है। ग्रामीणों की मानें तो किरन सिंह कभी गांव में नहीं दिखती। ऐसे में समझा जा सकता है कि गांव के विकास के लिए आने वाली योजनाओं का लाभ ग्रामीणों को कितना मिल पा रहा है। आरोप है कि योजनाओं के लाभ भी चहेतों को दिया जाता है, जिससे पात्र लोग सरकारी योजनाओं का लाभ पाने से वंछित रह जाते हैं।
इस संदर्भ में किरन सिंह से बात करने पर उन्होंने जवाब देने की जगह इसे टाल गईं। उनका कहना है कि काम हो रहा है। काम को कौन कर रहा है, इससे क्या मतलब?
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