बहुत भयानक आहट सुनाई दे रही है। दिल्ली को एकबार फिर उसी दिशा में ले जाने का प्रयास हुआ है, जैसा 2020 में हुआ था। चित्र और वीडियो देखिए। इस बार रामनवमी से शुरू हुआ यह खेल दिल्ली में घनीभूत करने की दिशा में बढ़ गया। सनातन भारतीय देश की सीमा में अब किसी भी सनातन हिन्दू पर्व त्योहार पर चिंताएं बढ़ रही हैं। वैसे भी दिल्ली एक ऐसा भूभाग है जिसमे भारतीयता और सनातन के तत्व बहुत मामूली ही बचे हैं। ऐसा लंबे समय की तैयारी के साथ हुआ है। दिल्ली में कितने भारतीय रहते हैं, अभी इसका अंदाजा नहीं है क्योंकि यह ऐसा प्रदेश है जहां अभारतीय तत्वों को बहुत प्यार मिलता है।
दिल्ली का यह रोग देश के बाकी शहरों में भी पसारने लगा है। हर शहर के चौराहों पर, सड़क के बीच डिवाइडर पर, खाली जमीनों पर बसने वाली अभारतीय आबादी में लगातार हो रहा इजाफा आखिर एक दिन में तो होता नहीं। इसका एक बड़ा उदाहरण लखनऊ में इंदिरागांधी प्ररिष्ठान का चौराहा है। कोई कभी भी इसे देख सकता है कि वहां लालबत्ती पर भीख मांगने और समान बेचने वाले बच्चे और महिलाएं क्यों सालों से डेरा जमाए हैं। इसको आखिर हमारी व्यवस्था कब समझेगी। आज दिल्ली में श्रीहनुमान जी के जन्मोत्सव का जुलूस आखिर भारत के भीतर ही निकला था। इससे पहले रामनवमी पर खरगौन से लेकर देश के नौ राज्यों में हुए उत्पात को अभी अभी तो सभी ने देखा है। क्या हम केवल देखते रहेंगे या उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ वाले उपायों को देश मे अपनाएंगे भी। अभी अभी सूचना आयी है कि दिल्ली की घटना को देखते हुए उत्तर प्रदेश में अलर्ट जारी कर दिया गया है। तो क्या समझ लिया जाय कि इस सेकुलर देश मे भारतीय पर्व त्योहार नहीं मनाए जाने चाहिए?
जरा गौर से देखिए। पूरे देश में सभी रेलवे लाइनों के दोनों ओर बांग्लादेशी जिहादी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं ने झुग्गियां बना ली हैं। हर स्टेशन पर सौ मीटर के अंदर मस्जिद-मजार ज़रूर मिल जाएगी।एक ही झटके में और एक ही कॉल पर पूरे भारत का रेलवे नेटवर्क जाम कर देने की स्थिति में वे आ चुके हैं। सभी स्टेशनों, प्लेटफॉर्म्स, रेलवे लाइनों के आस पास बनी अवैध मजारों में संदिग्ध किस्म के लोग दिन रात मंडराते रहते हैं और रेकी करते रहते हैं। उनकी गठरियों में क्या सामान बिना टिकट देश भर में फैलाया जा रहा है, कोई चेक नहीं करता। मज़ारों-मस्जिदों में किस तरह के गोदाम और काम चल रहे हैं, इससे प्रशासन आंखें बंद किये है। हमारे शहरों में जितने हाईवे निकलते हैं। किसी पर भी बढ़ जाइये, तो हर तीन चार किलोमीटर पर एक नई मजार बनी मिल जाएगी बिल्कुल रोड पर। अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि कुछ तो षड़यंत्र चल रहा है। यदि पूरे देश में हालात यही हैं तो कितनी खतरनाक स्थिति है आप स्वयं समझ सकते हैं।
देश की राजधानी दिल्ली को जिहादियों ने लगभग चारों तरफ से घेर लिया है बल्कि दिल्ली के भीतर नई दिल्ली, जहां हमारी केन्द्र सरकार रहती है उसे भी पूरी तरह से घेर लिया है। हजरत निजामुद्दीन स्टेशन से देवबंद तक तो जमात का गढ़ ही हो गया है। जब भी कभी हालात बिगड़े तो राजधानी पूरी तरह से जाम मिलेगी, रेलवे लाइनें जाम मिलेंगी, हाईवेज जाम मिलेंगे। आपको भागने का मौका कहीं नहीं मिलेगा। ट्रेने उड़ा दी गयीं, सड़कों पर चक्का जाम कर दिया तो न आप तक मदद आ पाएगी, न आप कहीं भाग पाएंगे।
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एक आवाज पर सड़कें रोकी जानी है, पुलिस चौकियों, सुरक्षा बलों पल हमले होने हैं, इसकी रिहर्सल शाहीन बाग और दिल्ली दंगों में की जा चुकी है। कौन कहां से कमांड करेगा, हर शहर में कौन कहां से लीड लेगा, कौन कहां फॉलो करेगा, कैसे मैसेज पास होंगे, कैसे गजवाए हिंद अमलीजामा पहनेगा, तैयारी पूरी दिखती है। इंतजार है तो शायद सिर्फ पाकिस्तानी और बाँग्लादेशी आर्मी के ग्रीन सिग्नल और तालिबानी लड़ाकों का। साथ ही हिजाब-नकाब-हलाल दुकानों, और शहर के उन हिस्सों में भी, जहां इनकी आबादी नहीं है। सहारनपुर, मुजफ्फरपुर, मेरठ, अलीगढ़, गाजियाबाद, मेवात, अलवर, गुड़गांव चारों तरफ से दिल्ली तालिबानी मानसिकता से घिर चुकी है। इनका प्रत्येक व्यक्ति न केवल घातक हथियारों से लैस है बल्कि मार काट में भी पूर्णतः निपुण है, और हैवानियत को शेरदिली और दयाभाव को बुझदिली और कमजोरी तथा छल कपट करना, घात लगाकर रहना इनकी परवरिश है।
सोचिए विभिन्न राजनीतिक दलों के जाति के नाम पर बांटने वाले नेता, क्या हमें, हमारे परिवारों को इन देशद्रोहियों के हाथों से बचा पाएंगे? हमें छोड़िये, क्या खुद को बचा पाएंगे? अपने सेकुलर खोटे सिक्कों वामपंथियों, बीचवालों, मोमबत्ती गैंग, पुरस्कार वापसी गैंग, कांग्रेसियों, आपियों, पापियों, अखिलेश, ममता, ओवैसी और योगी-मोदी के विरोध में खतना करने को तैयार लिबरल इत्यादि का खतरा अलग से है। बहुत ही खतरनाक कोढ़ इस देश में फैल चुका है और देश को गलाने लगा है। इसका इलाज समाज को जातियों में तोड़ने वाले नेताओं के पास तो बिलकुल भी नहीं है, वो तो इसको सच मानने से ही मना कर देंगे और केंद्र को ही कोसते रहेंगे, जबकि यह पिछली सरकारों के अंधेपन और अदूरदर्शिता के कारण हुआ है, एक दिन में नहीं, ये नासूर सत्तर सालों में बना है।
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अब यह नहीं समझ में आ रहा कि आखिर देश के अच्छे मुसलमान भाई कहां हैं। उनकी कोई आवाज क्यों नहीं आ रही। सामाजिक और साम्प्रदायिक सौहार्द्र के किसी मसीहाई व्यक्तित्व का कोई उभार नही दिख रहा। गंगा जमुनी तहजीब वाले भी नहीं नजर आ रहे। भाई लोग, भारतीय सनातन वैदिक हिन्दू पर्व य त्यौहार एक सभ्य जीवन संस्कृति का अंग हैं। ये कोई साम्प्रदायिक या पांथिक आयोजन नहीं हैं। ये तो मनाए ही जायेंगे। आपके किसी पत्थर से ये आयोजन नहीं रुकेंगे। और यदि किसी को भ्रम है तो वह अपना भ्रम पाले रहे। हनुमान जी तो इस कल्प के संरक्षक हैं, वे संरक्षण और दहन दोनों जानते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)