Vinoba Bhave Jayanti: गांधी और विनोबा भावे आज भी प्रासंगिक हैंl दोनों के चिन्तन समग्र विश्व का चिन्तन थाl गांधी अहिंसा और मानवता के पुजारी थे, तो विनोबा करुणा की मुर्तिl विश्व के इतिहास में अहिंसक क्रान्ति भूदान आन्दोलन के प्रणेता, प्रसिद्ध चिन्तक, मौलिक विचारक, दार्शनिक, ब्रम्हविध्या के उपासक, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी 11 सितम्बर, 1895 को जन्मे भारत रत्न संत आचार्य बाबा विनोबा भावे महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलने वाले स्वतन्त्रता आन्दोलन के बाद देश प्रेम ही नहीं विशुद्ध मानव प्रेम से भरा रचनात्मक आंदोलन चलाने वाले महान दार्शनिक थेl उनका व्यक्तित्व अदभुत था।
वर्ष 1916 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिलान्यास के अवसर पर महात्मा गांधी के ऐतिहासिक भाषण और विचार से प्रभावित होकर जब उन्होंने गांधी से मिलने का संकल्प लेकर उनके आश्रम में प्रवेश किया तब उनकी गांधी के विचार और दर्शन में ऐसी आस्था बनी की, उन्होंने गांधी के एकादश व्रत का पालन कर अपना समुचा जीवन गांधी और उनके आश्रम को समर्पित कर दिया थाl वे मौलिक विचारक ही नहीं एक महान दार्शनिक भी थेl उनमें अपने विचारों को व्यवहार में लाने की अद्भुत क्षमता थीl गांधी से प्रेरणा पाकर उन्होंने जो कार्य किये वह गांधी के विचारों का क्रियात्मक रूप ही था। गांधी जो सोचते थे और करना चाहते थे, विनोबा भावे ने वही कियाl
सन 1940 में देश के स्वतन्त्रता के लिए गांधी के नेतृत्व में किये गये व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिए प्रथम सत्याग्रही कौन होंगे, इस प्रश्न को लेकर जब लोगों में उत्सुकता बनी हुई थी, तब कई लोगों का मत था कि प्रथम सत्याग्रही कांग्रेस का कोई वरिष्ठ नेता या गांधी के निकट का कोई अनुयायी होगा। लेकिन गांधी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह के प्रथम सत्याग्रही विनोबा भावे होंगे, जब यह घोषणा की तो सारा देश दंग रह गयाl तब कई लोग विनोबा भावे को जानते तक नहीं थेl तब ये विनोबा भावे कौन हैं, उनके बारे में गांधी ने लिखा था “मेरे बाद अहिंसा के सर्वोत्तम प्रतिपादक और उसे समझने वाले विनोबा ही है। विनोबा भावे मुर्तिमान अहिंसा है, उनमें मेरी अपेक्षा काम करने की अधिक दृढ़ता है। 1940 में उन्होंने अपनी पुस्तक हरिजन में लिखा था कि विनोबा की स्मरण शक्ति अद्भुत है, वे प्रकृति से विद्यार्थी हैं और आश्रम का हर छोटा बड़ा काम सूत कताई से लेकर पाखाना-मैला सफाई तक का काम उन्होंने किया।
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वे आश्रम के दुर्लभ रत्न है, संस्कृति का अध्ययन करने जब वे आश्रम से एक वर्ष की छुट्टी लेकर गये, तब एक वर्ष समाप्त होने पर बगैर सूचना दिये वे उसी दिन और उसी समय आश्रम में वापस आ गये थे। मैं तो भूल ही गया था कि उनकी छुट्टी उसी दिन पूरी हो रही थीl विनोबा भावे की गांधी में पूर्ण आस्था थीl गांधी के निधन के बाद उन्होंने रचनात्मक कार्यों के साथ भूदान और सर्वोदय आन्दोलन चलाकर समाज को नई दिशा दीl अपने पदयात्रा के दौरान 1951 में तेलंगाना के पोचम पल्ली गांव में उन्हें वहां के कुछ हरिजन भूमिहीनों ने जीवन व्यापन करने के लिए सरकार से कुछ जमीन दिलाने का आग्रह किया, तो उनकी अपील पर तथा उनकी वाणी और विचार से प्रभावित होकर उन्हें गरीबों में वितरीत करने के लिए कुछ भूमि वहां के जमींदारो ने भूदान में दे दीl
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वहां से ईश्वरीय प्रेरणा से भूदान और ग्राम दान आन्दोलन का ऐसा सूत्रपात हुआ कि उनका भूदान आन्दोलन अहिन्सक क्रान्तिकारी का देश और दुनिया के लिए एक अनूठा उदाहरण बन गयाl करीब 42 हजार एकड़ भूमि भूदान में प्राप्त कर उन्होंने भूमिहीनों में उसका वितरण किया। गांव-गांव में पदयात्रा करके मानव जगत को कत्ल के बजाय करुणा का रास्ता दिखायाl संकुचित भावना से आगे बढ़कर विश्व बन्धुत्व और विश्व शान्ति की भावना के विकास के लिए जय जगत का नारा दियाl हरिजनों को मंदिर प्रवेश कराया, जीवन के उद्देश्य से भटके तथा हिंसा की राह पर चल पड़े दस्यु डाकुओं को उन्होंने मानव प्रेम से भरा मार्ग दिखायाl वे जहां भी जाते रुहानियत की बात करते थे। वे कहते थे कि मजहब पचास हो सकते हैं, लेकिन रुहानियत तो एक ही हैl आज जब हमारे सामाजिक और राजनीतिक जीवन में हिंसा और अशान्ति बढ़ती जा रही है, तब विनोबा भावे की तीसरी शक्ति में निहित रुहानियत और सर्वोदय की भावना से ही हमें नई दिशा मिल सकती हैl
(लेखक गांधी विचारक हैं।)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)