नई दिल्ली। ”मीडिया और इंटरनेट की दुनिया ने किताबों के प्रति लोगों की रुचि को विकसित किया है। किताबों के जरिए आप अपने आत्म को और उन्नत बनाते हैं। मेरा तो मानना है कि किताबें आत्मा के लिए औषधि का काम करती हैं।” उक्त विचार प्रख्यात कथाकार एवं लेखिका डॉ. अल्पना मिश्र ने आज भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) की ओर से आयोजित कार्यक्रम ‘वसंत पर्व’ में व्यक्त किए। इस मौके पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी, अपर महानिदेशक के. सतीश नंबूदिरीपाड, अपर महानिदेशक (प्रशिक्षण) ममता वर्मा एवं डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह विशेष तौर पर मौजूद रहे।

‘पठनीयता की संस्कृति’ विषय पर अपने विचार रखते हुए डॉ. मिश्र ने कहा कि भारत में सदियों से पठन पाठन की परंपरा रही है। नालंदा और तक्षशिला के पुस्तकालय हमारी उसी ज्ञान परंपरा का कभी हिस्सा थे। भारत ने ही दुनिया को पढ़ने का संस्कार दिया है। उन्होंने कहा कि पुस्तकें पंडित होती है और बिना ज्ञान के विवेक का पूरा होना संभव नहीं है। ऐसे में अगर किताबें ज्ञान से भरपूर हैं, तो वह पाठक का भी ज्ञानार्जन करती हैं।

डॉ. मिश्र ने आगे कहा कि पढ़ना मानवीय क्रियाकलाप का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। सामूहिक और व्यक्तिगत चेतना को गढ़ने में ‘पढ़ने की संस्कृति’ का अहम योगदान रहा है। यूरोप से लेकर एशिया तक आधुनिकता के फैलाव में ‘पढ़ने की संस्कृति’ निर्णायक भूमिका में रही है। उन्होंने कहा कि किताबें व्यक्ति के मानसिक विकारों को भी दूर करने का कार्य करती हैं। व्यक्ति की कुंठाओं को दूर करती हैं। किताबें व्यक्तित्व निर्माण के साथ भाषा के परिमार्जन का भी कार्य करती हैं।

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डॉ. अल्पना मिश्र ने कहा कि पढ़ना असल में संवाद करना होता है। सभी तरह की किताबें बोलती हैं, लेकिन वहीं एक अच्छी किताब सुनना भी जानती है। पाठक को कभी भी उपभोक्ता की तरह नहीं देखना चाहिए। पाठक ही शब्दों का निर्माता है, जो लेखक की रचना को पुनर्जन्म देने का कार्य करता है। उन्होंने कहा कि तकनीक के प्रसार के बावजूद भी ऐसा नहीं हुआ कि किताबें छपना बंद हो गई हों। लोग आज भी किताबें पढ़ना पसंद करते हैं। समय और समाज को बेहतरी से समझने के लिए किताबों को जरूर पढ़ना चाहिए। किताबें हमारी कई समस्याओं का समाधान भी करती हैं, हमारे लिए नए मार्ग प्रशस्त करती हैं।

इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने वर्तमान समय के परिवेश की तरफ इशारा करते हुए कहा कि पठनीयता की संस्कृति पर आज सवाल खड़े हो रहे हैं। मौजूदा शिक्षा पद्धति में बच्चे रटंत विद्या पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि बच्चों में पढ़ने की संस्कृति को विकसित किया जाए। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में स्त्रियों को सभी प्रमुख कार्य दिये गए हैं। हमारे यहां स्त्री पूज्यनीय हैं, लेकिन व्यवहारिक रूप में हम स्त्रियों का उतना सम्मान नहीं करते, जितने की वह हकदार हैं। इस सोच को बदलने की जरूरत है। वहीं कार्यक्रम का संचालन विष्णुप्रिया पांडेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. प्रमोद कुमार ने किया।

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इस कार्यक्रम से पहले वसंत पंचमी के अवसर पर आयोजित एक अन्य कार्यक्रम में आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी की तरफ से मां सरस्वती की पूजा अर्चना कर सभी के लिए सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद लिया गया। इसके बाद भारतीय जन संचार संस्थान के पुस्तकालय की ओर से महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की जयंती के उपलक्ष्य में एक व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिसको डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह ने संबोधित किया।

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