प्रकाश सिंह
UP News: समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के नेतृत्व में भले ही दो बार सत्ता से दूर हो गई है, लेकिन पार्टी पदाधिकारियों को अभी भी उनसे काफी कुछ उम्मीदें नजर आ रही है। हालांकि कड़वा सच यह भी है कि अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के नेतृत्व में सपा कई बार बुरी तरह चुनाव हार चुकी है। राजनीति में प्रयोग होते रहते हैं, लेकिन इन प्रयोगों से अगर नुकसान हो रहा है, तो इससे नेतृत्वकर्ता पर सवाल उठना लाजिमी है। लेकिन चाटुकारिता की राजनीति में गलत को गलत कहने की हिम्मत जनप्रतिनिधियों में नहीं दिखती। शायद यही वजह है कि पार्टी मुखिया की तरफ से लिए गए गलत फैसलों का पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ता विरोध नहीं कर पाते। वर्ष 2024 में देश में लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश की राजनीति को साधने के लिए अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की तरफ से शूद्र बनाम धर्म की राजनीति शुरू कर दी गई है।
अयोध्या राममंदिर निर्माण का विरोध कर और कारसेवकों पर गोली चलवाकर उत्तर प्रदेश की सत्ता की सीढ़ी चढ़ने वाली समाजवादी पार्टी अब अखिलेश यादव के नेतृत्व में शूद्र बनाम हिंदुत्व कर अपना खोया जनाधर तलाशने की कोशिश कर रही है। इसके लिए पार्टी ने स्वामी प्रसाद मौर्य का हथियार के रूप में चुना है। बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा-भाजपा सरकारों में सत्ता की मलाई काटने के बाद अब सपा में रहकर हिंदू धार्मिक पुस्तकों पर नई परिभाषा गए रहे है। मजे की बात यह है कि स्वामी प्रसाद मौर्य जो हिंदू धर्म से विमुख होकर बौद्धिष्ट बन चुका है, वह धार्मिक पुस्तकों पर अपनी अज्ञानता का ज्ञान बांट रहे हैं और इसमें अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) उनका पूरा समर्थन कर रहे हैं।
लोकसभा चुनाव 2024 में 80 सीटों पर जीत हासिल करने का सपना पाले अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) हाल ही में हुई शिक्षक-स्नातक एमएलसी चुनाव की पांच में से एक भी सीट नहीं जीत पाए। कुछ सीटों पर इतनी बुरी हार हुई है कि पार्टी की जमानत तक जब्त हो गई। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो रामचरितमानस पर सवाल उठाने के चलते लोगों में स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ समाजवादी पार्टी के खिलाफ आक्रोश फूट रहा है। शूद्र राजनीति पर समाजवादी पार्टी के अंदर भी लोगों का गुस्सा देखा जा रहा है। लोग खुलकर इसका विरोध करने की जगह इसे अखिलेश यादव की ओछी राजनीति बता रहे हैं।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के सियासी कॅरियर की बात की जाए तो उनके नेतृत्व में पार्टी को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। गौरतलब है कि वर्ष 2012 में अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उस दौरान पार्टी की कमान उनके मुलायम सिंह यादव के हाथ में थी। लेकिन वर्ष 2017 में जब से अखिलेश यादव ने पार्टी कमान संभाली है, तब से सपा को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। इस दौरान सत्ता में आने के लिए अखिलेश यादव ने कभी कांग्रेस से हाथ मिलाया तो कभी बसपा से गठजोड़ किया। इसके बावजूद भी वह चुनाव नहीं जीत पाए।
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के नेतृत्व में कई बार मिली हार
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने पिता मुलायम सिंह यादव से विद्रोह करके वर्ष 2017 में समाजवादी पार्टी की कमान संभाली थी। इस बीच चाचा शिवपाल यादव से विवाद करके वह काफी चर्चा में रहे। विवाद इतना बढ़ गया कि अखिलेश यादव ने पार्टी को खड़ी करने वाले चाचा शिवपाल यादव को उनके समर्थकों के साथ बाहर कर दिया। सपा ने कांग्रेस से गठबंधन वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ा। नतीजा रहा सपा सिर्फ 47 सीटों पर ही सिमट कर रह गई।
इसके बाद अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने लोकसभा चुनाव 2019 में बसपा प्रमुख मायावती के साथ गठबंधन किया। लेकिन इसबार भी सपा महज पांच सीटें ही जीत पाई। इसी तरह विधानसभा चुनाव 2022 में अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश की छोटी-छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा। इस बार सपा की सीटों में इजाफा तो हुआ, लेकिन सत्ता में आने से रह गए। ऐसा तब हुआ जब सत्ता विरोधी लहर के चलते प्रदेश में सपा के पक्ष में माहौल था। बावजूद इसके सपा को केवल 111 सीटें ही मिलीं।
विधानसभा चुनाव 2022 के कुछ महीनों बाद ही रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव हुए। ये दोनों सीटें सपा के गढ़ माने जाते रहे हैं, और लंबे समय से पार्टी का कब्जा भी था, लेकिन इन उपचुनाव में ये दोनों सीटें सपा के हाथ से निकल गईं।
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इसके अलावा मैनपुरी लोकसभा और खतौली व रामपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए। इस चुनाव में सपा अपना गढ़ मैनपुरी बचाने में सफल रही और खतौली में सपा के सहयोगी दल आरएलडी को जीत मिली। मगर रामपुर विधानसभा सीट जिसपर सपा का वर्षों से कब्जा था, वह अखिलेश यादव के हाथों से निकल गई।
दिलचस्प है कि अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी पिछले एक दशक से निगम चुनाव और पंचायत चुनाव भी लगातार हारती आ रही है। वहीं आल ही में संपन्न हुए एमएलसी चुनाव से अखिलेश यादव के खाते में एक और हार दर्ज हो गई है। बता दें कि उत्तर प्रदेश में अभी निगम चुनाव और इसके बाद 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में अखिलेश यादव का शूद्र बनाम हिंदुत्व क्या गुल खिलाएगा यह देखना दिलचस्प होगा।
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