मोदी की सरकार ने अभी तक यह जिम्मेदारी तय नहीं कर सकी कि भीषण रेल दुर्घटना किस कारण हुई, जिसमें तीन सौ से अधिक जानें गयी और एक हजार से ज्यादा लोग घायल हुए। इतनी बड़ी दुर्घटना और हानि के बाद भी जिम्मेदार लोगों की पहचान करने में विफलता मोदी की छबि और कथनी को कंलकित करती है। नरेन्द्र मोदी भी रेलवे के जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों को संरक्षण देकर उनके गुनाहों पर पर्दा डालेंगे।
दुर्घटना में तकनीकी पक्ष को रख कर रेलवे कर्मचारियों और अधिकारियों को बचाने का खेल जारी है। रेलवे के कर्मचारियों और अधिकारियों की कामचोरी के कारण यह हादसा हुआ है। दोनों ओर से सिंगनल हरा था। सिंगनल दोनों ओर से हरा था, तो यह गलती रेलवे कर्मचारियों की है। रेलवे के कर्मचारी और अधिकारी कामचोरी करते हैं। खासकर रात में दारू के नशे में रहते हैं। मैंने खुद कई यात्राओं में रेलवे के टिकट चेकर को शराब के नशे में देखा है, कोच अटेंडेंट को शराब के नशे में देखा है, रेलवे कोच के सफाईकर्मियों को शराब के नशे में देखा है। रेलवे स्टेशनों और रेल यातायात नियंत्रण कक्ष में रेलवे के कर्मचारी मनोरंजन करते हैं, दारू के नशे में यातायात नियंत्रण की अवहेलना करते हैं।
सिर्फ नरेन्द्र मोदी सरकार की ही कारस्तानी नहीं है। प्राय: सभी सरकारों की कारस्तानी यही रही है। बड़ी दुर्घटनाओं के बाद रेलवे अधिकारियों और कर्मचारियों को बचाया जाता है, उनके गुनाह को छिपाया जाता है, यात्रियों का संहार करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों को पुरस्कृत किया जाता है। बड़ी दुर्घटना के बाद जांच कमिटी बनती है। वर्षों बाद जांच कमिटी की रिपोर्ट बनती है और लीपापोती का खेल हो जाता है। जांच करने वाले भी सरकारी अधिकारी होते हैं और अधिकारी अपने अधिकारी कर्मचारी को बचा लेते हैं। दारूबाज और कामचोर कर्मचारियों की कारस्तानी के कारण सरकारी नेता बदनाम होते हैं। ओडिशा रेल हादसे से नरेन्द्र मोदी की छबि खराब हुई। अच्छा शासन देने के वायदों का प्रहसन हुआ है। नरेन्द्र मोदी ने एक पूर्व अधिकारी को रेल मंत्री बना कर पहले ही गलती किये हैं। इस रेल मंत्री का प्रदर्शन औसत से भी नीचले स्तर का है। रेल मंत्री का इस्तीफा होना चाहिए था। मोदी का रेल मंत्री निक्कमा है, उनमें विजन की कमी है। अगर मोदी ने जिम्मेदार रेल अधिकारियों को दंडित किया होता और रेल मंत्री का इस्तीफा लिया होता, तो फिर उनकी छबि जनता में अच्छी बनती।
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ओडिशा के बालासोर रेल हादसे की जांच की कहानी भी वैसी ही होगी, जैसी कि पूर्व की घटनाओं में बैठी जांच कमिटी की हुई थी। रेलवे का बयान भी इसी तरफ संकेत देते हैं। रेलवे ही नहीं बल्कि पूरे सरकारी विभाग के कर्मचारी-अधिकारी अपनी कामचोरी का शिकार जनता को बनाते हैं। दारूबाज और कामचोर अधिकारियों व कर्मचारियों को संरक्षण देने में सरकार आगे रहती है। जब मंत्री सत्ता से बाहर आते हैं, तब उन्हें रिश्वतखोर, दारूबाज और कामचोर सरकारी अधिकारी व कर्मचारी की करतूत मालूम होती है।
ओडिशा के बालासोर रेल दुर्घटना न तो अकेली है और न ही अंतिम है। आगे भी इस तरह की भीषण दुर्घटनाएं होती रहेगी। क्योंकि जब रेलवे के दारूबाज, कामचोर और रिश्वतखोर कर्मचारियों- अधिकारियों को दंड ही नहीं मिलेगा तो फिर वे यातायात नियंत्रण के प्रति जिम्मेदार कैसे बनेंगे?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
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