इंदौर: आज हम ऐसे दौर में रह रहे हैं, जहां सूचनाओं का अंबार है और रोजमर्रा की बातचीत में ‘पोस्ट ट्रूथ’ जैसे शब्द शामिल हो गए हैं। तकनीक के विकास के साथ ही सूचनाओं का अंबार भी लगातार बढ़ता जा रहा है। फेक न्यूज अपने आप में एक बड़ा व्यापार बन गई है और डिजिटल मीडिया ने भी इसे प्रभावित किया है। ऐसे में ‘मीडिया लिटरेसी’ की आवश्यकता और बढ़ जाती है। यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला द्वारा आयोजित ‘स्वराज अमृत महोत्सव व्याख्यान’ के दौरान व्यक्त किए। इस अवसर पर पत्रकारिता विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. सोनाली सिंह नरगुंडे, ब्रह्माकुमारीज, इंदौर से बीके अनीता, मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.अर्पण जैन और वरिष्ठ पत्रकार मुकेश तिवारी भी मौजूद रहे।
‘मीडिया साक्षरता की आवश्यकता क्यों?’ विषय पर विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि जब कोई बात सत्य से परे हो, जब झूठ और सच में कोई अंतर न हो, जब सही और गलत का विचार तथ्य या ज्ञान से न हो, बल्कि भावनाओं के आधार पर हो, तो उसे ‘पोस्ट ट्रूथ’ कहते हैं। अपने मतलब के लिए बातें गढ़ना और उनका प्रचार करना कोई नई बात नहीं है, लेकिन डिजिटल दुनिया में जिस तरह से राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर झूठी खबरें आ रही हैं, वह चिंता की बात है।
आईआईएमसी के महानिदेशक के अनुसार मीडिया साक्षरता किसी एक माध्यम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर माध्यम और उसके विभिन्न पहलुओं के प्रति आपकी समझ को विकसित करती है। मीडिया साक्षरता का महत्व आज पहले से ज्यादा इसलिए भी है, क्योंकि बाजार और व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा की वजह से मीडिया का स्वरूप बहुत बदल चुका है। उन्होंने कहा कि आज सोशल मीडिया हमारे जीवन के कई पहलूओं को तय कर रहा है। दुनियाभर में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
प्रो. द्विवेदी ने कहा एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में सोशल मीडिया यूजर्स की संख्या 3 अरब 96 करोड़ हो गई है, जो दुनिया की आबादी का 51 प्रतिशत है। पिछले एक साल में दुनियाभर में सोशल मीडिया यूजर्स की संख्या में 10 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है। इस दौरान 37 करोड़ 6 लाख लोग सोशल मीडिया से जुड़े हैं। अगर इसका औसत निकाला जाए, तो हर दिन 10 लाख यूजर्स और हर सैकंड 12 लोग सोशल मीडिया से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर एक यूजर रोजाना 2 घंटे 22 मिनट का समय बिताता है। अगर सोशल मीडिया पर सभी यूजर्स के द्वारा बिताए गए वक्त को जोड़ दिया जाए, तो हर दिन 10 लाख साल के बराबर का समय सिर्फ सोशल मीडिया पर ही खर्च हो जाता है।
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प्रो. द्विवेदी ने बताया कि आज कौन सी सूचना सही है और कौन सी गलत, इसका पता लगाना बेहद मुश्किल है। किसी सूचना की जांच पड़ताल के लिए एक बेहतरीन तकनीक से ज्यादा, देश में लोगो को मीडिया साक्षर बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मीडिया साक्षरता की जरूरत केवल विद्यार्थियों को नहीं, बल्कि पूरे समाज को है। हमें यह समझना होगा कि किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर दिखने वाली हर खबर सही हो, इसकी गारंटी नहीं है। उस कंटेंट की जांच पड़ताल जरूरी है और उसे यूं ही दूसरे के साथ शेयर करना उचित नहीं है। कार्यक्रम के दौरान डॉ. मनीष काले, डॉ. नीलमेघ चतुर्वेदी, डॉ. विनोद सिंह, डॉ. कामना लाड, डॉ. मीनू कुमारी, डॉ. अनुराधा शर्मा और फैकल्टी के अन्य सदस्यों सहित विद्यार्थी भी उपस्थित थे।
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