
अवधेश कुमार
इस वर्ष विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। शताब्दी वर्ष में संघ की बेंगलुरु में आयोजित अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का दो दिवसीय आयोजन अनेक अर्थों में महत्वपूर्ण घटना मानी जाएगी। संघ के सम्पूर्ण नेतृत्व मंडल के अलावा विचार परिवार के सभी 32 संगठनों के शीर्ष 1482 प्रतिनिधियों के आयोजन से निकला स्वर संघ और उसके विचार परिवार की भूमिका का दिग्दर्शन होगा। संघ की हर बैठक के संदर्भ में आम सोच यही होती है कि इस समय के सर्वाधिक चर्चित मुद्दे पर संघ का क्या रुख सामने आता है। हालांकि संघ की बैठकों के निर्णयों और वक्तव्यों ने बार-बार साबित किया है कि उसका हर कार्य-व्यवहार लक्ष्य की दृष्टि से होता है और तात्कालिक घटनाएं उसी के आलोक में देखी जाती हैं।
बैठक के आरंभ में अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने पत्रकार वार्ता की, उद्घाटन दिवस पर सह सरकार्यवाह मुकुंद सीआर, दूसरे दिन सहसरकार्यवाह अरुण कुमार तथा अंत में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसाबोले ने पत्रकारों के माध्यम से बैठक की वांछित जानकारी दी। किसी ने भी अपनी ओर से महाकुंभ और बांग्लादेश को छोड़ अन्य पर वक्तव्य नहीं दिया क्योंकि ये बैठक के फोकस या मुख्य एजेंडा नहीं थे। सारे वक्तव्य प्रश्नों के उत्तर में दिए गए। औरंगजेब और उसके कब्र को लेकर प्रश्न के उत्तर में ही पहले अंबेकर ने इसे अप्रासंगिक बताया तो होसाबोले ने कहा कि देश के इथोस, संस्कृति, सभ्यता, प्रकृति के अनुरूप काम करते हुए समृद्धि में योगदान देता है उसे आइकॉन माना जाएगा या जो बाहर से आकर आक्रमण कर शासन किया, हजारों लोगों पर अत्याचार किए, धर्म परिवर्तन किया उसे? यानी संदर्भ है कि देश किसे आदर्श माने।
एजेंडा के बारे में जानकारी देते हुए मुकुंद ने स्पष्ट किया कि संघ स्थापना के 100वें वर्ष की प्रतिनिधि सभा में संघ कार्य से सामाजिक प्रभाव और समाज में बदलाव लाने पर चर्चा,विचार-विमर्श होगा। सारे वक्तव्यों से स्पष्ट हुआ कि संघ शताब्दी के दौरान विशिष्ट गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करेगा जो विस्तार तथा सुदृढ़ीकरण पर केंद्रित होगा। इसके संदर्भ में लक्ष्य से संबंधित सूत्रों का आधार दिया गया तो उसके अनुसार आगे की कार्य योजनाएं। तीन सूत्र दिए गए- 1. आत्मचिंतन करना, 2. संघ कार्य के लिए समाज द्वारा दिए समर्थन के लिए आभार प्रकट करना तथा 3. सबके वक्तव्य का स्वर था कि राष्ट्र तथा समाज को संगठित करने के लिए स्वयं को पुनः समर्पित करना है। दत्तात्रेय ने कहा कि संघ का उद्देश्य हिन्दू समाज का पुनर्जागरण रहा है, लक्ष्य हिन्दू समाज को संगठित करना है। सहसरकार्यवाह अरुण कुमार ने कहा कि संघ संगठन नहीं, समाज परिवर्तन का बड़ा जनआंदोलन है। संघ शाखाओं और राष्ट्रव्यापी गतिविधियों के माध्यम से इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए काम कर रहा है।
कार्यक्रमों की कुछ बिंदुवार रूपरेखा देखिए
1. शताब्दी वर्ष में विजयादशमी 2025 को संघ गणवेश में स्वयंसेवकों के मंडल, खंड व नगर स्तर के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। 2. नवंबर 2025 से जनवरी 2026 तक घर-घर संपर्क अभियान चलेगा। 3. सभी मंडलों और बस्तियों में हिन्दू सम्मेलन आयोजित कर प्रत्येक के जीवन में एकता और सद्भाव, राष्ट्र के विकास में सभी का योगदान और संघ द्वारा घोषित शताब्दी वर्ष में पंच परिवर्तन अर्थात परिवार प्रबोधन, सामाजिक समरसता, स्व का भाव, पर्यावरण संरक्षण और नागरिक कर्तव्य में प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी का संदेश दिया जाएगा। 4. सामाजिक सद्भाव बैठकें आयोजित कर सांस्कृतिक आधार और हिन्दू चरित्र को खोए बिना आधुनिक जीवन जीने का संदेश दिया जाएगा। 5. नागरिक संवाद आयोजित कर राष्ट्रीय दृष्टि से स्थापित नकारात्मक और विकृत नैरेटिव या विमर्श की जगह सही विमर्श स्थापित करने कोशिश होगी। इतने कार्यक्रमों के बाद शताब्दी वर्ष में लाखों लोग उनसे जुड़ते हैं तो किसी के लिए छाती पीटने का कारण नहीं होना चाहिए। जो लोगों की स्वाभाविक चाहत के अनुरूप काम करेगा लोग उसके साथ आएंगे।
सरकार्यवाह द्वारा प्रतिनिधि सभा के आरंभ में प्रस्तुत प्रतिवेदन में वर्ष भर के कार्यों के विवरण के साथ वर्तमान संगठन की स्थिति के आंकड़े उपलब्ध हैं। किसी को भी वह संघ की वेबसाइट पर मिल जाएगा। इसके अनुसार इस समय देश में लगभग एक करोड़ स्वयंसेवक हैं। शताब्दी वर्ष में संघ विस्तार और सुंदृढ़िकरण के लिए 2,453 स्वयंसेवक आगे आए और विस्तारक बने गये। वो सब अपनी क्षमता के अनुरूप या थोड़ा भी काम करेंगे] तो इसका असर होगा। संघ में युवाओं की संख्या यूं ही नहीं बढ़ रही है। इस वर्षआयोजित कुल 4,415 प्रारंभिक वर्गों में 2 लाख 22 हजार 962 स्वयंसेवक शामिल हुए, जिनमें 1 लाख 63,000 14 से 25 आयु वर्ग और 20 हजार से अधिक 40 वर्ष से ऊपर के आयु के थे। अरुणाचल प्में 1999 में काम शुरू हुआ और 274 शाखाएं लग रहीं हैं।
तमिलनाडु में जहां कार्य न के बराबर था वहां शाखाओं की संख्या चार हजार पार कर गई है। 1925 में संघ की स्थापना हुई और 1940 तक सभी प्रांतों में पहुंचे तो 1972 तक सभी जिलों में, 1996 तक सभी नगर और प्रखंडों तक पहुंच गए और अभी देश के सभी मंडलों (एक मंडल दस से बारह गांवों को मिलाकर बनाया गया है) तक पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है। प्रतिवेदन में आए आंकड़ों के अनुसार 51 हजार 570 स्थानों पर प्रतिदिन 83 हजार 129 शाखाएं चलती हैं। साप्ताहिक शाखाओं और मिलन की कुल संख्या 1 लाख 15 हजार 276 है। संघ को अभी भी शहरी मध्य वर्ग और कुछ व्यापारियों का संगठन मानने वालों को दत्तात्रेय द्वारा दी गई इस जानकारी पर ध्यान देना चाहिए कि विस्तार में ग्रामीण मंडलों पर केंद्रित करते हुए देश को 58 हजार 981 ग्रामीण मंडलों में विभाजित किया है, जिनमें से 30 हजार 717 मंडलों में दैनिक शाखाएँ और 9 हजार 200 मंडलों में साप्ताहिक मिलन चल रहे हैं। विस्तार का ही परिणाम है कि संघ आज समाज जीवन के हर क्षेत्र में प्रभावी रूप से सक्रिय है जिनमें शिक्षा, चिकित्सा, स्वावलंबन, सामाजिक जागरण, सामाजिक सद्भाव जैसे क्षेत्रों में करीब 90 हजार गतिविधियों का आंकड़ा दिया गया है। सामाजिक समरसता के लिए उन क्षेत्रों में विशेष काम किया जा रहा है जहांअत्यधिक छुआछूत है।
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किसी संगठन का कार्य-व्यवहार लक्ष्यों और उसके अनुरूप संकल्पों पर निर्भर करता है। शताब्दी वर्ष के संकल्प का शीर्षक है, विश्व शांति और समृद्धि के लिए समरस और संगठित हिन्दू समाज का निर्माण। कुछ पंक्तियों को उद्मृत कर समझा जा सकता है। अनंत काल से ही हिंदू समाज एक प्रदीर्घ और अविस्मरणीय यात्रा में साधनारत रहा है, जिसका उद्देश्य मानव एकता और विश्व कल्याण हैI एक संगठित, चारित्र्यसंपन्न और सामर्थ्यवान राष्ट्र के रूप में अपनी प्राचीन संस्कृति और समृद्ध परंपराओं के चलते सौहार्दपूर्ण विश्व का निर्माण करने के लिए भारत के पास अनुभवजनित ज्ञान उपलब्ध है। अतः सभी प्रकार के भेंदों को नकारने वाला समरसता युक्त आचरण , पर्यावरणपूरक जीवनशैली पर आधारित मूल्याधिष्ठित परिवार, ‘स्व’बोध से ओतप्रोत और नागरिक कर्तव्यों के लिए प्रतिबद्ध समाज, का चित्र खड़ा करने के लिए हम सब संकल्प करते हैं। प्रतिनिधि सभा विश्व के सम्मुख उदाहरण प्रस्तुत करने वाला समरस और संगठित भारत का निर्माण करने हेतु संकल्प करती है।
संघ की आलोचनाओं से परे हटकर विचार करिए। हिंदुत्व का सर्वसमावेशी विचार और उसके अनुरूप भारत राष्ट्र सहित संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए कार्यक्रम का संकल्प उपयुक्त दृष्टि या सही दिशा में कार्य करने से प्राप्त उपलब्धियां के आत्मविश्वास के बिना संभव नहीं। इसमें मनुष्य को मानसिक और शारीरिक रूप से विकसित करते हुए उसको अपने परिवार, समाज, देश और फिर विश्व कल्याण तक ले जाना, उस दृष्टि से राष्ट्र निर्माण जैसे व्यापक लक्ष्य शताब्दी वर्ष में सामने रखा है। इसके कार्यों को देखें तो उसमें सुसंगती दिखाई भी पड़ती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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