सरसर हवा बाण की नाईं
थर थर काँपैं बाबू माई,
तपनी तापैं लोग लुगाई
कोहिरा छंटत नहीं बा भाई।
चहियै सबै जियावत बा,
जाड़ा बहुत सतावत बा।।
गरमी असौं बराइस खीस,
जाड़ा भय बा ओसे बीस।
जौ ना रोकिहैं अब जगदीश,
मरि जइहैं बुढ़ये दस बीस।
जियरा बहुत जरावत बा,
जाड़ा बहुत सतावत बा।।
माछी-मच्छर भएन अलोप,
पहिने बाटैं सब कनटोप।
बरफ किहे बा अइसन कोप,
गाँव भयल सरवा यूरोप।
केहु ना देखै आवत बा,
जाड़ा बहुत सतावत बा।।
– कैलाश गौतम