मेघ जब बागन में बरसें,
ताल में जीवन रस भर दे।
मयूरी नाचे वन उपवन,
मेघ जब मोतिन सा बरसे।
मिटे तब धरती माँ की प्यास,
पुराये गंगा की तब आस।
सुधा जब भूजल की बरसे,
खेत तब गेहुअन के लहकें।
बौर जब बागन में बगरे,
प्राकृति ‘देवी’ बन निखरे।
देख वशुधा धन अन्न अपार,
किसानों का जियरा हरखे।
बढ़ाये भारत का तब मान,
कराये जीवन को साकार।
मेघ जब बागन में बरसे,
ताल में ‘जीवन- रस’ भर दे।
(रचयिता जलशक्ति मंत्रालय में वरिष्ठ भूजल वैज्ञानिक हैं)