वर्ष 2010 में पीएफआई के सदस्यों ने एक मलयाली प्रोफेसर टीजे जोसेफ का हाथ काट दिया था, क्योंकि प्रोफेसर ने पैगम्बर पर सवाल उठाए थे। वर्ष 2012 में केरल सरकार ने हाईकोर्ट में एक एफिडेविट देकर बताया कि पीएफआई (pfi) ने राज्य में अब तक करीब 27 राजनीतिक हत्याएं की या करवाईं। मारे गये सभी लोग सीपीआईएम (एम) और आरएसएस से जुड़े हुए थे। ज्यादातर हत्याएं सांप्रदायिक रंग देकर की गईं। ऐसी ही 86 और हत्याओं की प्लानिंग थी। यह एफिडेविट केरल के कन्नूर में एबीवीपी से जुड़े एक छात्र की हत्या के बाद पेश किया गया था। 2016 में कर्नाटक में आरएसएस (rss) से जुड़े एक स्थानीय प्रचारक की हत्या की गई। इस हत्याकांड में पुलिस ने पीएफआई के चार सदस्यों को गिरफ्तार किया था। वर्ष 2013 में केरल पुलिस ने उत्तरी कन्नूर में पीएफआई के कैंप पर छापा मारकर वहां से बम, तलवार, इंसानों के कई पुतले, आईआईडी ब्लास्ट में इस्तेमाल होने चीजें और आतंकी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने से संबंधित पोस्टर, पर्चे व अन्य सामग्री बरामद की थी।
सनद रहे कि केरल में 1957 से लेकर आज तक बारी-बारी से भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी और कांग्रेस ने शासन किया है। बीच में एक बार मुस्लिम 1979 में सीएच मोहम्मद कोया के नेतृत्व में यूनियन मुल्लिम लीग ने भी सरकार बनाई। हालांकि वह सरकार चला नहीं पाये। केरल में आज तक भाजपा एक भी बार सरकार नहीं बना पायी है। वर्ष 2012 में असम के कोकराझार में इसी संगठन ने अफवाह फैलाकर दंगा कराया। फरवरी 2020 में सीएए और एनआरसी के विरोध में दिल्ली में हुए दंगों में कम से कम 53 लोगों की हत्या कर दी गई थी। लाखों की सरकारी व निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया।
इन दंगों का पूरा ताना-बाना पीएफआई ने बुना था और इसकी फंडिंग विदेशों से भी हुई थी। नवयुवक आईबी अधिकारी अंकित शर्मा को भी इसी दंगे में मौत के घाट उतार दिया गया था। जो किसी काम से बाजार गया था। अगस्त, 2020 में एक फेसबुक पोस्ट को लेकर बेंगलुरू में दंगा भड़का। पुलिस ने जांच-पड़ताल के बाद सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के नेता मुजामिल पाशा को गिरफ्तार किया। पुलिस के अनुसार इसी ने भीड़ एकत्र की और उसे हिंसा के लिए उकसाया। सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया भी इस्लामिक कटृटरपंथी संगठन पीएफआई का राजनीतिक संगठन है।
अब राजस्थान के कोटा में इसी संगठन द्वारा यूनिटी मार्च निकाला जा रहा है। जिसकी इजाजत वहां की कांग्रेसनीत सरकार ने दी है। संगठन का कहना है इस मार्च का मकसद गणतंत्र को बचाना है। हालांकि इसी मार्च में इस्लाम के कुछ कथित विद्वानों ने उनके विचारों से मेल न रखने वाली मुस्लिम औरतों को भाजपा की दलाल भी करार दिया है। कर्नाटक में हिजाब विवाद को हवा देने में दो संगठनों का नाम आ रहा है, जिसमें से एक है, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया और दूसरा है पीएफआई। कैंपस पफ्रंट ऑफ इंडिया, पीएपफआई का स्टूडेंट विंग है। कर्नाटक के शिक्षा मंत्री ने एक बार फिर पीएफआई को बैन करने की मांग उठाई है।
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दरअसल पीएफआई यानी पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया एक कटृटर इस्लामिक संगठन है। पीएफआई की स्थापना 1993 में बने सोशल डेमोक्रेटिक फ्रंट से हुई। सोशल डेमोक्रेटिक फ्रंट का जन्म 1992 अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के बाद हुआ। बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के बाद भारत का सबसे शिक्षित और प्रगतिशील कहा जाने वाला राज्य केरल इस्लामिक कटृटरपंथियों का गढ़ बना और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया खूब फला-फूला। दंगा भड़काने, आतंकी और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त पाए जाने पर वर्ष 2006 में केरल सहित अन्य कई राज्यों में इस संगठन को बैन कर दिया गया। इसके बाद सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया का पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया में विलय हो गया। एनआईए के मुताबिक पीएफआई का नेटवर्क पूरे देश में फैल चुका है। केरल और कर्नाटक में तो इनके राजनीतिक संपर्क भी स्थापित हो चुके हैं। अप्रैल, 2019 को श्रीलंका में ईस्टर के मौके पर हुए बम धमाकों के तार भी पीएफआई से जुड़े थे।
पीएफआई का केरल माड्यूल आईएसआई के लिए भी काम करता था। इसका खुलासा इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट में किया गया था। द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार पीएफआई भारत भर में लव जिहाद के मामलों में शामिल है। जिसमें बाकायदा जाति के हिसाब से लड़कियों को लव जिहाद में फंसाने पर ईनाम भी मिलता था। सबसे ज्यादा ठाकुर फिर पंडित आदि आदि। वर्ष 2017 में केरल की पुलिस ने एनआईए को लव जिहाद के 93 मामले में सौंपे थे। आतंकी संगठन सिमी (स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) से भी जुड़ चुके हैं। वर्ष 2006 में सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद इसके सदस्य पीएफआई में आ गये।
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उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश और कर्नाटक में इस संगठन की गतिविधियों को देखते हुए इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जा रही है। लेकिन कुछ राजनीतिक दल और नेता अपने स्वार्थ की राजनीति पर इस कदर उतारू हैं कि इतने खतरनाक संगठन और मंसूबे रखने वाले लोगों का भरपूर समर्थन करते हैं फिर चाहे दंगे हों, चाहे देश ही क्यों न जले। भारतीय राजनीति का जिस तरह का नैतिक पतन, पथभ्रष्ट विजन आज देखने को मिल रहा है, वैसा पहले कभी नहीं रहा। वैचारिक मतभेद होते हुए भी सभी के लिए देशहित सर्वोपरि था। लेकिन आज कुछ सियासी लोग वोट की राजनीति में ऐसा उलझ गये हैं कि वह आतंकी गतिविधियों और देश विरोधी ताकतों का समर्थन करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)