Parivartini Ekadashi: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्म एकादशी या परिवर्तनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु जोकि चतुर्मास की योगनिद्रा में सोए हुए थे, करवट ली थी। करवट बदलने से भगवान विष्णु का स्थान परिवर्तन होता है। इस वजह से इसे परिवर्तनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन लोग व्रत करते हैं और विष्णुजी के वामन स्वररूप की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत रखने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है और कभी भी घर में धन की कमी नहीं होती।
शुक्ल पक्ष एकदशी
मंगलवार, 26 सितंबर 2023
एकादशी आरंभ: 25 सितंबर 2023 सुबह 07:56 बजे
एकादशी समाप्त: 26 सितंबर 2023 प्रातः 05:01 बजे
परिविर्तिनी एकादशी की पूजा विधि
– परिविर्तिनी एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान करके सूर्य देवता को जल अर्पित करें।
– इसके बाद साफ सुथरे पीले वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु और गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
– भगवान विष्णु को पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें और पंचमेवा प्रसाद चढ़ाएं।
– भगवान गणेश को मोदक और दूर्वा अर्पित चढ़ाएं।
– पहले भगवान गणेश और फिर भगवान विष्णु की पूजा करें और उनके मंत्रों का जाप करें।
– गरीबों को जल, अन्न-वस्त्र, जूते या छाते का दान करें।
– व्रत के दिन निराहार रहकर, जलाहार या फलाहार ही ग्रहण करें।
परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा
यह व्रत कथा भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी। त्रेता युग में राजा बलि नाम का असुर राज करता था। असुर होकर भी वह अत्यंत दानी, सत्यवादी और प्रजा की सेवा करने वाला था। अपनी भक्ति और सुशासन के प्रभाव से राजा बलि स्वर्ग में देवराज इन्द्र के स्थान पर राज्य करने लगा। इससे देवराज इंद्र एवं सभी देवता भयभीत हो गए। सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की।
भगवान विष्णु ने देवताओं की रक्षा के लिए वामन अवतार धरा और राजा बलि के पास गए। विष्णु जी के वामन अवतार ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान करने की याचना की। राजा बलि ने वामन की इस याचना को स्वीकार किया। दान का संकल्प करते ही विष्णु जी के वामन अवतार ने विराट रूप धारण कर लिया और दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया। तीसरे पग के लिए कोई स्थान रिक्त न रहने पर राजा बलि ने वामन के सामने हाथ जोड़कर अपना सर झुका दिया और तीसरा पग अपने सिर पर रखने को कहा।
राजा बलि की दयालुता और भक्ति से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बना दिया। तभी से परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस एकादशी पर पाताल लोक में भगवान विष्णु जी की एक शयन करती हुई प्रतिमा सदैव राजा बलि के पास रहती है।
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परिवर्तिनी एकादशी व्रत के लाभ
-जो भक्त परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
-इस व्रत को रखने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
-इस व्रत पर दान करने से राजा बलि के समान भगवान विष्णु जी की कृपा बरसती है और जीवन पर्यंत बनी रहती है।
-परिवर्तिनी एकादशी पर माता लक्ष्मी का पूजन करना भी अत्यंत शुभ होता है। इसे घर में धन धान्य की कमी नहीं रहती।
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