Mauni Amavasya: माघ महीने की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस तिथि को स्नान और दान का बड़ा महत्व माना गया है। मौनी अमावस्या पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। मौनी अमावस्या के महत्व के बारे में शिवपुराण में उल्लेख किया गया है। कहा जाता है इस दिन दान देने से ग्रह दोष खत्म हो जाते हैं, वैसे तो साल में कुल 12 अमावस्या पड़ती है, लेकिन सभी में मौनी अमावस्या का अपना विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन किये गए दान-पुण्य धर्म का फल भी कई गुणा मिलता है साथ ही मौन व्रत रखने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

मौनी अमावस्या कथा

काफी समय पहले की बात है। कांचीपुरी नाम के एक नगर में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसके 7 बेटे और एक बेटी थी। उसकी बेटी का नाम गुणवती और पत्नी का नाम धनवती था। उसने अपने सभी बेटों का विवाह कर दिया। उसके बाद बड़े बेटे को बेटी के लिए सुयोग्य वर देखने के लिए नगर से बाहर भेजा। उसने बेटी की कुंडली एक ज्योतिषी को दिखाई। उसने कहा कि कन्या का विवाह होते ही वह विधवा हो जाएगी। यह बात सुनकर देवस्वामी दुखी हो गया। तब ज्योतिषी ने उसे एक उपाय बताया। कहा कि सिंहलद्वीप में सोमा नाम की एक धोबिन है। वह घर आकर पूजा करे तो कुंडली का ये दोष दूर हो जाएगा। यह सुनकर देवस्वामी ने बेटी के साथ सबसे छोटे बेटे को सिंहलद्वीप भेज दिया। दोनों समुद्र के किनारे पहुंचकर उसे पार करने का उपाय खोजने लगे। जब कोई उपाय नहीं मिला तो वे भूखे-प्यासे एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने लगे।

उस पेड़ पर गिद्ध का परिवार रहता था। गिद्ध के बच्चों ने देखा कि दिनभर इन दोनों को भूखे-प्यासे देखा तो वे भी दुखी होने लगे। जब गिद्ध के बच्चों को उनकी मां ने खाना दिया, तो बच्चों ने खाना नहीं खाया और उन भाई बहन के बारे में बताने लगे। उनकी बातें सुनकर गिद्धों की मां को दया आ गई। उसने पेड़ के नीचे बैठे भाई बहन को भोजन दिया और कहा कि वह उनकी समस्या का समाधान कर देगी। यह सुनकर दोनों ने भोजन ग्रहण किया। अगले दिन सुबह गिद्धों की मां ने दोनों को सोमा के घर पहुंचा दिया। वे उसे लेकर घर आए। सोमा ने पूजा की। फिर गुणवती का विवाह हुआ, लेकिन विवाह होते ही उसके पति का निधन हो गया। तब सोमा ने अपने पुण्य गुणवती को दान किए, जिसके बाद उसका पति फिर जीवित हो गया।

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इसके बाद सोमा सिंहलद्वीप आ गई, लेकिन उसके पुण्यों के कमी से उसके बेटे, पति और दामाद का निधन हो गया। इस पर सोमा ने नदी किनारे पीपल के पेड़ के नीचे भगवान विष्णु की आराधना की। पूजा के दौरान उसने पीपल की 108 बार प्रदक्षिणा की। इस पूजा से उसे महापुण्य प्राप्त हुआ और उसके प्रभाव से उसके बेटे, पति और दामाद जीवित हो गए। उसका घर धन-धान्य से भर गया। मान्यता है कि तभी से मौनी अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष तथा भगवान विष्णु की पूजा की जाने लगी।

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