Narendra Bhadoria
नरेन्द्र भदौरिया

मोहनदास करमचन्द गांधी का विवाह 13 वर्ष की अवस्था में कस्तूरबा से हुआ था। मोहनदास 02 अक्टूबर, 1869 में जन्में थे, जबकि कस्तूरबा उनसे छह माह से कुछ बड़ी थीं। कस्तूरबा का जन्म 11 अप्रैल, 1869 को हुआ था। गांधी जी ने अपने लेखों में स्पष्ट किया है कि वैवाहिक जीवन के प्रारम्भिक दिनों में वह निरन्तर कस्तूरबा के साथ बिताये समय के सन्दर्भ में ही सोचा करते थे। ऐसे में उन्हें कई बार ग्लानि होती थी। क्योंकि वह यौन सम्बन्धों को लेकर बहुत आग्रही हो गये थे।

गांधी जी ने लिखा है कि अफ्रीका में कस्तूरबा के साथ रहते हुए 1906 में 38 वर्ष की अवस्था में उन्होंने ब्रह्मचर्य का व्रत साधने का निश्चय किया। अपने पर कठोरता का नियम लागू करने की ठानी। इतने पर भी उन्होंने अपने स्वभाव में बहुत परिवर्तन होते नहीं देखा। तब स्वयं को जांचने-परखने के लिए नया प्रयोग करने की ठानी। वह स्वयं को महिलाओं से घिरा रखकर बहुत तृप्ति अनुभव करने लगे। उनके शब्दों में मेरे द्वारा स्वयं के ब्रह्मचर्य को जांचना सामाजिक तौर पर बहुत से लोगों को स्वीकार्य नहीं था। पर अपने स्वभाव को छिपाने का प्रयास मैंने कभी नहीं किया। यौन सम्बन्धों को लेकर मैं बहुत आग्रही था यह बात मेरे निकटस्थ लोग जानते थे।

अपने निकटवर्ती लोगों की आँखों में खटकने के बाद भी गांधी जी ने अपने ब्रह्मचर्य को जांचने के जो प्रयोग शुरू किये उससे उस समय बहुत खलबली बच गयी थी। पर गांधी की विशेषता यह थी कि अपनी आलोचना का सामना किया। कुछ भी छिपाने की बजाय स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि वह स्त्री सम्बन्धों के बड़े आग्रही रहे हैं। यह कहने में संकोच नहीं किया कि ब्रह्मचर्य का व्रत 1906 में लेने के बाद वह इस स्थिति से मुक्त नहीं हो पाये। अपनी ऐसी स्थिति से मुक्त होने के लिए ही ब्रह्मचर्य के प्रयोग प्रारम्भ किये। यह प्रयोग दो तरह के थे। एक तो यह कि रात के समय अपने विस्तर पर अपने से कम उम्र की महिलाओं को नग्न स्थिति में लेटाते। स्वयं भी वस्त्रहीन रहते। इतना ही नहीं दिन के समय स्नानागार में जाते तो वहाँ भी कम उम्र की महिलाओं और लड़कियों को बुलाकर साथ स्नान करते।

Mahatma Gandhi

मोहनदास गांधी के इन प्रयोगों से कस्तूरबा गांधी बहुत क्षुब्ध थीं। उनकी मनोदशा इतनी दयनीय थी कि उनके प्रति आत्मीय भाव रखने वालों के नेत्र सजल हो जाते। ऐसा नहीं कि कस्तूरबा की अन्तर्वेदना की जानकारी गांधी जी को न मिलती हो। आश्रम के लोग सारी बातें दोनों पक्षों तक पहुँचाते। साथ ही पूरे परिसर से लेकर बाह्य वातावरण तक में गांधी के ऐसे प्रयोगों की चर्चा निन्दा के रूप में होने लगी थी। गांधी इस बात से सन्तुष्ट थे कि वह अपने चित्त को शुद्धि तक ले जाने के लिए प्रयोग कर रहे हैं। भले ही इन प्रयोगों में उन्हें प्राय: विफलता मिलती है। उनके इस कथन से स्पष्ट होता है कि जिन महिलाओं और बालाओं को लेकर वह प्रयोग करते उसमें ब्रह्मचर्य का उनका हठ बहुधा पूर्ण नहीं होता था।

गांधी जी के इन प्रयोगों की चर्चा जब उनके एक प्रशंसक और अनुयायी आचार्य विनोबा भावे तक पहुँची तो वह बहुत खिन्न हुए। विनोबा जी गांधी जी से उम्र में छोटे थे। उनका जन्म 11 सितम्बर, 1895 में हुआ था। इस तरह वह गांधी जी से 26 वर्ष छोटे थे। अपने आश्रम में विनोबा जी ने यह बात सुनी तो गमछे से मुँह ढक लिया था। वहाँ उपस्थित कुछ लोगों से इतना भर कहा कि इन बातों की चर्चा फिर कभी मुझसे न करें। कुछ पुस्तकों में लिखा गया है कि विनोबा जी ने इसके लिए प्रायश्चित करने का परामर्श उन लोगों को दिया था जो इसमें सहायक बने अथवा इसे रोक नहीं पाये।

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इसके विपरीत गांधी जी ने उन महिलाओं के नाम भी शामिल किये जो ऐसे प्रयोगों में उनका साथ देती रहीं। उनकी अपनी पुस्तक ‘ब्रह्मचर्य के मेरे प्रयोग’ में यह नाम मिलते हैं। भारतीय मूल के एक लेखक वेद मेहता की पुस्तक महात्मा गांधी एण्ड एपॉस्टल्स में इस विषय पर कई बातें लिखी हैं। एक जगह लिखा गया है साबरमती आश्रम में अपने निजी सचिव प्यारे लाल की बहन, सुशीला नायर (जोकि गांधी जी की निजी चिकित्सक थीं) के साथ नग्न स्नान को लेकर गांधी जी बहुत उत्सुक रहते थे। इसकों लेकर साबरमती आश्रम में आने वाले लोगों से वहाँ रह रहे लोग बहुत विस्तार से बातें करते थे। वेद मेहता ने यह भी लिखा है कि 69 साल के गांधी जी लगभग 24 वर्ष की सुशीला के साथ जब पहले दिन नग्न स्थित में स्नानागार गये तो आश्रम में खलबली मच गयी थी। यह बात 1938 की है।

पुस्तक में कहा गया है कि 1938 की इस घटना से आश्रम के लोग उबल पड़े थे। दोनों जब स्नानागार से बाहर निकले तो आश्रमवासियों ने उनको घेर लिया था। तब गांधी जी को सफाई देनी पड़ी थी। उन्होंने लोगों से अपना और सुशीला का बचाव करते हुए कहा था कि वह दोनों पार्टीशन के दो ओर नहा रहे थे। साथ ही यह भी सफाई दी कि दोनों ने एक-दूसरे की नग्न स्थिति को नहीं देखा। लेखक वेद मेहता का कहना है कि गांधी जी का ब्रह्मचर्य को लेकर प्रयोग पत्नी कस्तूरबा से दूरी बनाकर रहने तक सीमित नहीं था। आश्रम में पति-पत्नी के साथ रहने पर सभी के लिए प्रतिबन्ध था। ऐसा नियम गांधी जी ने ही बनाया था। गांधी जी ने सभी लोगों के लिए कहा था कि पत्नी से सम्बन्ध न बनाये। यदि किसी के मन में यौन सम्बन्धों को लेकर विचार आये तो ठण्डे पानी से नहाकर अपने चित्त को शान्त करें।

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वेद मेहता की पुस्तक के अनुसार गांधी जी के अपने नियम अलग थे। 1920 से वह युवा लड़कियों के कन्धों का सहारा लेकर सुबह-शाम सैर पर जाने लगे थे। अपनी पौत्रियों आभा और मनू के कन्धों का भी वह जब तब सैर के समय सहारा लेते थे। सैर के बाद गांधी जी के तन की मालिश होती थी। इसमें लड़कियों और महिलाओं की सहभागिता स्वाभाविक थी। मालिश के उपरान्त सामूहिक नग्न स्नान के लिए उनके साथ सुशीला नायर और कई अन्य महिलाएं जाती थीं। यह क्रम साबरमती आश्रम में सामान्य दिनचर्या बन गया था। तब लोगों की चर्चा स्वत: थम गयी थी।

आश्रम के मैनेजर मुन्ना लाल शाह को लिखे एक पत्र में गांधी जी ने इन बातों का वर्णन स्वयं की कलम से किया। उन्होंने लिखा- आभा (गांधी जी के परपोते कनु की पत्नी) मेरे साथ तीन रातें सोई। कंचन केवल एक रात। जबकि वीनस नाम की लड़की का मेरे साथ सोना एक दुर्घटना मानी जा सकती है। वह मेरे बहुत करीब सोई थी। जिस कंचन का उल्लेख गांधी जी ने इस पत्र में किया। वह मुन्ना लाल की पत्नी थी। पत्र में गांधी जी ने मुन्ना लाल से कहा कि आप कंचन के पति हैं। उसके साथ मेरा सोना आपके मन में नाराजगी पैदा कर सकता है। लेकिन उनके या मेरे मन में कोई अन्य भाव नहीं आया। महात्मा गांधी के परपोते कनु की पत्नी आभा लम्बे समय तक गांधी जी के साथ रहीं। प्राय: जिन दो युवतियों के कन्धों पर हाथ रखकर गांधी चला करते थे उनमें एक ओर आभा होती थीं। वह मूलत: बंगाली थीं। जिनका विवाह कनु से हुआ था।

आभा ने वेद मेहता को बताया था कि जब वह 16 साल की थीं तब उन्हें एक दिन गांधी जी के साथ सोने का आदेश मिला था। गांधी जी ने उनसे कहा था कि ब्रह्मचर्य का प्रयोग करते हुए मैं यह सिद्ध करना चाहता हूँ कि जो पुरुष सुन्दर और जवान युवती के साथ नग्न लेटकर भी अपनी यौन भावना से दूर रह सके वहीं वास्तविक ब्रह्मचारी है। अपने इस प्रयोग का वर्णन स्वयं गांधी जी ने पूर्णाहुति के खण्ड दो में अपनी लेखनी से किया है। गांधी जी के इन प्रयोगों को लेकर उनके ब्रह्मचर्य पर प्राय: विवाद की स्थिति बनी रही है। उनके कालखण्ड में उनके आलोचक प्रश्न उठाते रहे कि यह नग्नता यदि ब्रह्मचर्य है तो फिर स्वच्छन्द यौनाचार क्या है।

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ब्रह्मचर्य को लेकर भारत के वैदिक साहित्य में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। इसके लिए प्रयोगों की बात किसी ग्रन्थ में नहीं की गयी है। इसके विपरीत सभी योगियों और महान ऋषियों का अभीमत रहा है कि जो स्त्रियों के प्रति सम्बन्धों को लेकर दुराग्रही है वह प्रयोगों के साहरे अपने मानस का प्रक्षालन नहीं कर सकता। किसी स्त्री के प्रति मन में काम भावना उत्पन्न होने का अर्थ है कि ब्रह्मचर्य की साधना खण्डित है। जो ऐसी साधना नहीं कर सकते उन्हें विवाह की अनुमति शास्त्रों में मिली हुई है। अनेक ऋषियों-मुनियों के वैवाहिक जीवन के प्रसंग मिलते हैं। गांधी जी के ब्रह्मचर्य को खोखला बताने वाले उनके आलोचक सदा से यही कहते आये हैं कि गांधी जी ने ब्रह्मचर्य की सनातन अवधारणा के साथ खिलवाड़ करने का पाप किया है।

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इस सन्दर्भ में गांधी के आलोचक यह भी कहते हैं कि अपनी चरित्रवान पत्नी के रहते उन्हें दुखी करते हुए गांधी जो जीवन जीते रहे वह किसी भी रूप में उनके महात्मा स्वरूप से मेल नहीं खाता। सोचने की बात है कि भारतीय या किसी अन्य समाज में क्या ऐसे नग्न उदाहरणों के सहारे नारी सुरक्षा के संकल्प पूरे हो सकते हैं। ऐसी पुस्तकों का बहिष्कार किया जाना चाहिए। जिन अच्छाइयों के लिए भारतीय समाज जाना जाता है उनके विरुद्ध आचरण की अनुमति किसी रूप में नहीं दी जा सकती।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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