आचार्य संजय तिवारी
आचार्य संजय तिवारी

Chhathi Maiya: दीपावली के बाद आने वाले छठ पूजा के दौरान, हम जिस ‘छठी मईया’ की पूजा करते हैं, उनकी उत्पत्ति और पहचान भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के जन्म से जुड़ी है। यह कथा न सिर्फ़ चमत्कारी है, बल्कि सृजन शक्ति की अद्भुत मिसाल भी है। आचार्य संजय तिवारी ने इस संबंध में विस्तार से जानकारी दी है।

वरदान की समस्या और शिव का तेज

स्कंद पुराण के अनुसार, तारकासुर नामक दैत्य को यह वरदान मिला था कि उसका वध केवल काम रहित शिव पुत्र ही कर सकता है। जब तारकासुर का आतंक तीनों लोकों में फैल गया, तो समस्त देवगण भगवान शिव के पास पहुँचे।

देवताओं की विनती सुनकर, भगवान शिव ने अपना अत्यंत तीव्र तेज और सत्व एक हवन कुंड में डाल दिया। शिव की ऊर्जा इतनी तीव्र थी कि माता पार्वती भी उसे गर्भ में धारण नहीं कर सकती थीं।

Chhathi Maiya

छह माताओं का समूह, छठी मईया का सृजन

शिव के इस सत्व को छह कृतिकाओं (सप्त ऋषि की पत्नियाँ) ने अपने गर्भ में धारण किया। ये छह देवियाँ थीं- शिव, संभूति, प्रीति, सन्नति, अनसूया और क्षमा। इन देवियों ने साढ़े तीन महीने तक इस तेज को गर्भ में रखा, लेकिन शिव का ताप इतना अधिक था कि भ्रूण रूपी तेज उन्हें जलाने लगा। असमर्थ होकर उन्होंने उन अल्प-विकसित बच्चों को गर्भ से बाहर निकाल दिया।

तब माता पार्वती ने अपनी तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग किया और इन छह नन्हे भ्रूणों को एक में मिला दिया। इस अद्भुत मिलन से कार्तिकेय का जन्म हुआ। आज भी उन्हें ‘अरुमुगा’ या छह चेहरों वाले देवता के तौर पर जाना जाता है। यही छह मातृकाएं लोक की ‘छठी मईया’ कहलाती हैं, और इसी सृजन शक्ति के कारण इस मास को ‘कार्तिक’ की संज्ञा दी गई।

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कार्तिकेय: एक अजेय योद्धा

कार्तिकेय ने 8 साल की उम्र में ही देवासुर संग्राम का नेतृत्व किया और तारकासुर का संहार करके तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। मान्यताओं के अनुसार, कार्तिकेय बाद में अपने माता-पिता से रुष्ट होकर दक्षिण भारत चले गए, जहाँ उन्हें मुरुगन भगवान के नाम से पूजा जाता है। तमिलनाडु में उनकी पूजा मुख्य रूप से होती है और उन्हें तमिलों के देवता (तमिल कडवुल) कहकर संबोधित किया जाता है।

कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के सबसे बड़े पुत्र हैं, और इन्हें ‘सेनाधिप’ भी कहा जाता है। इनकी कृपा से सैन्य शक्ति, विजय और अनुशासन की प्राप्ति होती है। जय छठी मईया।।

(लेखक संस्कृति पर्व पत्रिका के संपादक हैं।)

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