महानायक हैं ‘जेपी’ सर, सदा उपकार हैं करते।
जलाकर ज्ञान का दीपक, तिमिर का नाश हैं करते।।
ये लेखक हैं बड़े बेहतर, साहित्य से प्रेम हैं करते।
कवि हैं मंच के उम्दा, मगर खुद से नही कहते।।
जो लेखक हैं कही भटके, गुमनामी के तूफानों में।
उन्हें खुद ढूँढ कर लाते, अलग पहचान हैं देते।।
भक्त हनुमान जी के हैं, सदा हनुमान को जपते।
कोई पथ में मिले तनहा, सुलभ पथ उनका हैं करते।।
बड़े उदार दिल के हैं, सहज स्वभाव है इनका।
हमेशा मुस्कुराते हैं करूँ, गुण-गान क्या इनका।।
जीव-जंतु, पशु-पक्षी, सभी से प्यार हैं करते।
साहित्य और धर्म के पिछे, हमेशा लीन हैं रहते।।
कभी सन्यासी दिखते हैं, कभी दिखतें हैं ये योगी।
मसीहा मैं कहूँ इनको तो, अतिशयोक्ति, नही होगी।।
कलम थकती नहीं मेरी, मुक़्क़दर पर इतराती है।
शब्द जेपी जहाँं आये, अदब से सिर झुकाती है।।
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