मुरझाते उपवन को प्रियतम,
रसवती कर जाओ।
कोमल कंज खिलूँ बन जिसमें,
तुम पुष्कर बन जाओ।।
नैन थके हैं राह निहारत,
रिक्त प्रेम का है प्याला।
विरह अग्नि में तपते मन की,
शान्त न होती अब ज्वाला।।
मेरे प्रियतम तुम सावन में,
बन साक़ी आ जाओ।
लालायित अधरों पर मेरे,
अमिय बूँद बरसाओ।।
चटक चाँदनी हो रातें,
उर अंतर का तम मिट जाये।
लिपट रहूँ बाँहों में तेरे,
ऐसा मधुर वो क्षण आये।।
नैन नीर अब बनकर बैरी,
आँखों का काजल धोये।
चातक मन बेचैन रात भर,
देख चाँद नहीं सोये।।
मन ‘दीपा’ तेरे याद में व्याकुल,
देर करो ना अब प्रियवर।
तन में अगन लगाये अब ये,
धीमे धीमे पवन डोल कर।।
मिटे ताप मेरे मन की प्रियतम,
बन बादल तुम आओ।
बरसो ऐसे झूम के साजन,
शीत ह्रदय कर जाओ।।
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