अरबिन्द शर्मा अजनवी
अरबिन्द शर्मा अजनवी

पहचान बड़ी मुश्किल उनकी,
जिनकी यह चाह रही है।
फ़ेसबुक पर चोरी करना,
जिनका बस काम यही है।

रात-रात भर पता करें,
ये जगते रोज दिखेंगे,
किसी वाल के कवि की रचना,
खुद का नाम लिखेंगे!

रूप रंग भले विधना ने दी,
लेकिन गुण-धर्म नहीं है!
स्व-विवेक अपना लिखें,
कुछ ऐसा कर्म नहीं है!

मीठे बोल व सुंदर छवि,
एफबी पर भोले-भाले!
बाहर जितने श्वेत दिखें,
अंदर से उतने काले!

जैसे किसी का बाप कभी,
गैरों का बाप नहीं होता,
वैसे चोरी कर के कोई,
रचनाकार नहीं होता!

चोरी करते रचना की,
खुद कहते रचनाकार हैं,
ये हैं गन्दे नाली के कीड़े ,
बड़े ही ये मक्कार है!

ये नागफनी के काटें हैं,
इन्हें कैसे पुष्प पलास कहूं ,
ये चुभती जेठ दुपहरी हैं,
इनको कैसे मधुमास कहूं!

कितने कठीन परिश्रम से,
कवि गर्मी, तपन औ घाम लिखा,
घोर निशा में कायर उठकर,
उसपर अपना नाम लिखा!

टूटी रचना, छोटा कवि,
पर होती खुद की छाप!
दूजे का कोई पुत्र उठाकर,
नहीं बना है बाप!

दिन दूना औ रात चौगुना,
ईश्वर करें ये काम बढ़ें,
रक्त बसे यह घृणित कृत्य,
पीढ़ी दर पीढ़ी नाम बढ़े!

बस एक निवेदन पाठकगण से,
है मेरा भरपूर!
एफबी पर ऐसे मित्रों से,
रहना प्रियवर दूर!

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