झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम (Jharkhand Assembly Election Results) ने मेरी बातें सच कर दिया है। झारखंड विधानसभा चुनाव की घोषणा होने से पूर्व ही मैंने भाजपा के संबंध में दो बातें कहीं थी और वह दोनों बातें सही साबित हुई हैं। मेरी पहली बात थी कि पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी भाजपा के लिए अभिशाप बनेंगे। आत्मघाती गोल करेंगे। जीती हुई बाजी हार जायेंगे। मेरी दूसरी बात यह थी कि रोहिंग्या-बांग्लादेशी डेमोग्राफी भाजपा का संहार करेगी। इन दोनों बातों पर आधारित मेरे लेख अखबारों में प्रकाशित हो चुके थे। बाबूलाल मरांडी जब भाजपा में वापसी की थी तो भाजपा का आंतरिक सामंजस्य बिगड़ गया था, संतुलन खो दिया था। अनुशासन की कसौटी पर विरोध सामने नहीं आया था पर अंदर ही अंदर यह प्रकरण धधक रहा था।
बाबूलाल मरांडी भाजपा छोड़ने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी का दाह संस्कार कर्म किया था। यह याद कर भाजपा का समर्पित कार्यकर्ता अपने आप को ही शर्मसार स्थिति में देख रहे थे। सबसे बड़ी बात यह है कि बाबूलाल मरांडी इस दौरान सेक्युलर हो गये थे। बारह साल तक उनकी पार्टी ईसाई और कसाई सहयोग व समर्थन से चली थी। चर्च उनकी पार्टी का आर्थिक पोषण करता था। स्वयं के बल पर करिश्मा नहीं करने पर चर्च ने उन्हें भाजपा में वापसी करने का मंत्र दिया था। चर्च के आदेश पर ही मरांडी भाजपा में वापसी की थी। वापसी करने के साथ ही साथ भाजपा के लिए मरांडी अति विशेष हो गये थे। मरांडी के लिए भाजपा का एक तरह से संहार किया गया था, छोटे से बड़े कार्यकर्ताओं को मरांडी नाम केवलम करने के लिए कह दिया गया।
रघुवर दास को झारखंड से राज्यपाल बना कर बाहर कर दिया गया। करिया मुंडा जैसे ईमानदार राजनीतिज्ञ को सलाह के लायक भी नहीं समझा गया। अर्जुन मुंडा की भी कोई औकात नहीं रही थी। कहने का अर्थ यह है कि अर्जुन मुंडा को औकात हीन कर दिया गया था। फिर भी बाबू लाल मरांडी भाजपा को जीती हुई बाजी हरा दी, क्योंकि उन्होंने अपनी चलायी, अपनी पूर्व पार्टी के लोगों को भाजपा के सिर पर बैठाया। समर्पित और आधारशील कार्यकर्ताओं को अपमानित कर बाहर का रास्ता दिखाया। भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व भी कम दोषी नहीं है। मरांडी की पिछड़ी जाति विरोधी रणनीति का संहार क्यों नहीं किया गया?
अब मैं अपनी दूसरी बात पर आता हूं। मेरी दूसरी बात थी रोहिंग्या-डेमोग्राफी। डेमोग्राफी का बदलना भाजपा के लिए न केवल हानिकारक साबित हुआ बल्कि अस्तित्व संहार के कारण भी बन गया। जब डेमोग्राफी बदल रही थी, अचानक रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों की बाढ़ आ रही थी तब भाजपा के लोग, संघ के लोग आंख-कान, नाक में तेल डालकर सो रहे थे, उन्हें न तो भविष्य की चिंता सता रही थी और न ही इसके प्रतिकूल परिणामों की इन्हें चिंता थी। यह भी इन्हें अहसास नहीं था कि डेमोग्राफी बदलेगी तो इनकी सत्ता का संहार भी होगा। कई विधानसभा चुनावों में इसका असर सामने आ रहा था। डेमोग्राफी पूरी तरह से बदल चुकी है। कोई एक जिला नहीं बल्कि पूरे झारखंड की डेमोग्राफी बदली है। हर जगह मुस्लिम आबादी की जनसंख्या बढ़ी है। यह सही है कि डमोग्रेाफी का सबसे बड़ा प्रभाव संथाल परगना क्षेत्र में दिख रहा है।
संथाल परगना ऐसे तो झारखंड मुक्ति मोर्चा का क्षेत्र है पर यहां पर भी भाजपा का प्रभाव था, संथाल परगना में भाजपा का प्रदर्शन भी अच्छा होता था। भाजपा कई सीटें निकाल लेती थी। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि संथाल परगना क्षेत्र में रोहिंग्या-बांग्लादेशी मुसलमानों की सामानंतर सरकारें भी चलती हैं। गुंडागर्दी सरेआम देखी जा सकती है, तस्करी सरेआम देखी जाती है, गौकशी की घटनाएं भी सरेआम होती हैं। पहले ये आदिवासियों के साथ मिल कर रहते थे और ईसाई आदिवासियों को कहते थे कि हम आपके दोस्त हैं, हिन्दू और भाजपा वाले हामरे दुश्मन हैं। हम लोगों का संहार करना चाहते हैं, इसलिए इन लोगों से बचकर रहना होगा। जब रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठियों ने अपना पैर पूरी तरह से जमा लिया तब ये अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। अब रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठिये ईसाई आदिवासियों को भी खदेड़ने की रणनीति पर चल निकले हैं। कई दंगे भी हो चुके हैं। दंगों में एकतरफा हिंसा हुई है और इनकी हिंसा का प्रतिकार करने की क्षमता हिन्दुओं में नही हैं।
संथाल परगना क्षेत्र से हिन्दुओ का लगातार पलायन हो रहा है। जब रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठ प्रभावित क्षेत्र में हिन्दू ही नहीं बचेंगे तो फिर भाजपा को वोट कौन देगा? सिर्फ संथाल परगना क्षेत्र की ही बात नहीं है बल्कि झारखंड के हर क्षेत्र में रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठियों का प्रभाव बढ़ा है, कोल्हान क्षेत्र, उत्तरी और दक्षिण छोटानागपुर के साथ ही साथ राजधानी रांची में भी रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठियों ने अपनी शक्ति स्थापित कर ली है। इनके पास जरूरी सभी दस्तावेज भी हैं। ईसाई और कसाई से मुकाबला करने और इन्हें चुनौती देने की राजनीति भाजपा ने बंद कर दी है, संघ परिवार भी अब प्रभावित क्षेत्रों से बाहर हो गया है। भाजपा सिर्फ शहरी क्षेत्रों तक सीमित हो गयी है। ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा की जीवंतता कब की समाप्त हो चुकी है। ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा के लिए लड़ने का अर्थ अपनी जान को जोखिम डालना ही नहीं बल्कि जान को गंवाना भी होता है, सम्पति संहार करना होता है। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों के बूथों पर ईसाई और कसाई समर्थक राजनीतिज्ञों का एकाधिकार हो गया है।
कभी वनवासी क्षेत्रों में संघ का प्रभाव था, संघ के प्रकल्प चलते थे। पर अब संघ के प्रकल्प वनवासी क्षेत्रों में बंद हो गये, ये भाग कर शहरों में स्थापित हो गये। संघ के एक बड़ी हस्ती अशोक भगत विशुनपुर से भाग कर रांची में अपना कारोबार जमा लिया। विकास भारती अब वनवासी क्षेत्रों में सिर्फ दिखावे के लिए सक्रिय है। विकास भारती और अशोक भगत अब केन्द्रीय मंत्रियों और संवैधानिक पदों पर बैठी हस्तियों को आमंत्रित कर और चरणवंदना कर अपनी दुकानदारी जमा और चला रखी है। वनवासी क्षेत्रों में लड़ने वाले संघ समर्थक एक्टिविस्टों का साफ कहना है कि संघ भी अब चर्च और कसाई लोगों से डर गया है, लड़ना नहीं चाहता है। संघ के नेताओं की सलाह होती है कि चर्च के पादरियों से मत लडों, विवाद मत खड़ा करो, इनसे दोस्ती रखो, संवाद करो और सदभावना रखो। ऐसी परिस्थितियों में ईसाई और कसाई संगठनों ने अपनी राजनीतिक स्थिति इतनी मजबूत बना ली है कि इनके सामने भाजपा हाशिये पर ही रहेगी।
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झारखंड में पिछड़ी राजनीति भाजपा की गुलाम थी। बाबूलाल मरांडी ने पिछडों के साथ अन्याय किया था, पिछडों के अधिकारों का संहार किया था, पिछड़ों के आरक्षण को छीना था। पूरे देश में पिछड़ों का आरक्षण 27 प्रतिशत है। लेकिन बाबूलाल मरांडी ने अपनी सरकार के दौरान पिछड़ों के 27 प्रतिशत आरक्षण में कटौती कर दी थी। झारखंड में पिछड़ों को सिर्फ 12 प्रतिशत आरक्षण कर दिया था। बाबूलाल मरांडी के इस पिछड़ा विरोधी राजनीति पर बवाल हुआ था और बहुत बडी आंधी चली थी। चुनाव के दौरान पिछड़ी जाति के लोग ताल ठोक कर मरांडी और भाजपा को सबब सिखाने की धमकी दे रहे थे। पिछड़ी जातियों की बड़ी-बड़ी सभाएं हो रही थी, पिछड़ी जाति के लोग बाबूलाल मरांडी के आग उगल रहे थे, भाजपा से मरांडी को बाहर करने की मांग कर रहे थे। पर इस धमकी को भाजपा ने क्यों नजरअंदाज कर दिया। पिछड़ा वोट भाजपा के खिलाफ में चला गया।
नरेन्द्र मोदी ने झारखंड जीतने की पूरी व्यूहरचना तैयार कर दी थी। नरेन्द्र मोदी की सोच और रणनीति में कोई गलती नहीं थी, कोई कमी नहीं थी। कहने का अर्थ यह है कि झारखंड चुनाव में नरेन्द्र मोदी की रणनीति चाकचौबंद थी। नरेन्द्र मोदी ने अपनी पार्टी के सबसे अनुभवी नेताओं को झारखंड जीताने की जिम्मेदारी सौंपी थी। शिवराज सिंह चौहान और हिमन्त बिश्व शर्मा को जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। पर बाबूलाल मरांडी गिरोह के कारण ये सफल नहीं हो सके। बाबूलाल मरांडी गिरोह ने आंतरिक कमजोरियों को छिपा कर रखने का काम किया। समर्पित और जुझारू कार्यकर्ताओं को हाशिये पर रखने का कार्य किया। ठेकेदार और पूंजीपति चुनाव संचालन गिरोह के सहचर बन गये। बाबूलाल मरांडी के खिलाफ पिछड़ी जातियों की गोलबंदी और आक्रामक प्रचार-प्रसार को शिवराज सिंह चौहान और हिमन्त बिश्व शर्मा क्यों नहीं संज्ञान ले सके? इन सबका दुष्परिणाम सामने हैं।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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