राममूर्ति मिश्र
राममूर्ति मिश्र

Bangladesh Coup: देश की एकता और अखण्डता बनाये बनाये रखना लोकतांत्रिक देशों की प्राथमिकता होती है। एकता विखण्डित होने पर उस देश की बर्बादी तय है। जातिवाद, क्षेत्रवाद, आरक्षण, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था आदि ऐसे पहलू हैं, जिसके राजनीतिकरण होने पर देश को व्यापक हानि उठानी पड़ती है। दुनिया के ताकतवर देश विकसित हो रहे देशों को बर्बाद करने के कुचक्र रचते रहते हैं। जिस देश के राजनीतिज्ञों के साथ वहां की जनता सजग है, वहां इन देशों की ऐसी साजिशें विफल हो जाती हैं। लेकिन जिन देशों की जनता लालच और मुफ्तखोरी की शिकार होती है, वहां देश विरोधी तत्वों की मनमानी चलती रहती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि वर्ष 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनने के बाद दुनिया में भारत का मान बढ़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्वपटल पर लोकप्रिय नेता बनकर उभरे हैं।

शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षी दलों के नेताओं के साथ दुनिया में धाक जमाने वाले देशों के निशाने पर हैं। भारत की एकता व अखण्डता को तोड़ने के लिए 2014 के बाद कई ऐसे बड़े आंदोलन हुए, जिसके कोई आधार नहीं थे। सीएए लागू होने से भारत के मुसलमानों की नागरिकता छिन जाएगी। कृषि कानून लागू होने से किसानों की जमीन छीन ली जाएगी। ऐसी कई प्रयोजित अफवाह रहे जिसके चलते देश में लंबे समय तक धरना-प्रदर्शन की आड़ में उपद्रव मचाया गया। हालांकि केंद्र की मोदी सरकार ने संयम रखते हुए इन प्रदर्शनों को नाकाम कर दिया। लेकिन जिन देशों की सत्ताररूढ़ सरकार इन साजिशों का समझने में चूक की उन देशों का क्या हश्र हुआ वह आज सबके सामने है।

15 अगस्त 2021, 9 अप्रैल 2022, 14 जुलाई 2022 और 5 अगस्त 2024: चार देशों के इतिहास में दर्ज तख्तापलट की ये तारीखें सिर्फ संयोग नहीं हैं। भारत के पड़ोसी देशों, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश ने हाल के वर्षों में गंभीर राजनीतिक उथल-पुथल (upheaval) का सामना किया है। इन घटनाओं ने न केवल इन देशों के लिए बल्कि समग्र क्षेत्र के लिए एक चिंताजनक संकेत दिया है।

इन देशों में राजनीतिक अस्थिरता के पीछे विभिन्न कारण हैं, लेकिन एक सामान्य धागा यह है कि अधिकांश घटनाएं एक बड़ी वैश्विक शक्ति की नीतियों और उसके हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप हुई हैं। आइए इन चार देशों की घटनाओं का एक गहरा विश्लेषण करें।

बांग्लादेश: शेख हसीना का विदाई

5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन उग्र हो गए। स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग को लेकर छात्र आंदोलन ने भयंकर हिंसा का रूप ले लिया। शेख हसीना, जो पिछले 15 वर्षों से सत्ता में थीं, को अपने पद से इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा और उन्हें देश छोड़ना पड़ा।

अमेरिका ने बांग्लादेश में अपने एयरबेस के लिए शेख हसीना से सेंट मार्टिन द्वीप की मांग की थी, जिस पर हसीना ने स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया। इसके बाद अमेरिका ने हसीना को चुनाव हारने की धमकी दी, जो उनके लिए एक गंभीर संकट बन गया। हालात को भांपते हुए, अमेरिका ने आरक्षण के खिलाफ छात्र आंदोलन को फंडिंग की, जिससे स्थिति और खराब हो गई।

अफगानिस्तान: तालिबान की वापसी

15 अगस्त 2021 को तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया, जिससे राष्ट्रपति अशरफ गनी को भागना पड़ा। अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान से अपनी सेना की वापसी ने स्थिति को अत्यंत संवेदनशील बना दिया। तालिबान ने अमेरिका के वापस जाने का लाभ उठाकर पूरे देश में तेजी से अपनी स्थिति मजबूत की।

अमेरिका ने अफगानिस्तान पर 2001 में हमला किया था, जिसका परिणामस्वरूप तालिबान को सत्ता से बेदखल किया गया था। लेकिन 2021 में उनकी वापसी ने यह साबित कर दिया कि सैन्य हस्तक्षेप के बावजूद स्थायी शांति स्थापित करना संभव नहीं था।

पाकिस्तान: इमरान खान की सरकार का पतन

पाकिस्तान में, इमरान खान की सरकार भी एक साजिश का शिकार हुई। 9 अप्रैल 2022 को एक अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से इमरान की सरकार गिर गई। इस घटना के पीछे अमेरिकी नाराजगी थी, जब इमरान खान रूस के साथ अपने दौरे पर थे। लीक हुए दस्तावेजों में दावा किया गया कि अमेरिका ने इमरान खान को हटाने के लिए पाकिस्तानी राजदूत से बातचीत की थी।

इमरान ने खुद भी कहा था कि अमेरिका उन पर सेना को नियंत्रित करने का दबाव बना रहा था। इस प्रकार, पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता को अमेरिकी हस्तक्षेप के संदर्भ में देखा जा सकता है।

श्रीलंका: आर्थिक संकट और सत्ता परिवर्तन

श्रीलंका में 14 जुलाई 2022 को गंभीर आर्थिक संकट ने लोगों को सड़कों पर उतार दिया। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को भीड़ के सामने इस्तीफा देना पड़ा। देश की आर्थिक नीतियों, जिसमें चीन से लिया गया भारी कर्ज शामिल था, ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। राजपक्षे ने अपनी किताब में इस संकट के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि अमेरिका ने लगातार श्रीलंका को चेतावनी दी थी कि वह चीन के कर्ज में फंस जाएगा।

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इन चार देशों में तख्तापलट की घटनाएं न केवल उनके आंतरिक मामलों का परिणाम हैं, बल्कि वैश्विक राजनीति की भी परछाई हैं। अमेरिका का हस्तक्षेप, राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट ने इन देशों की लोकतांत्रिक संरचना को कमजोर कर दिया है। क्या यह घटनाएं एक पूर्व-निर्धारित योजना का हिस्सा थीं या बस अस्थायी संकट का परिणाम, यह एक गहन अध्ययन का विषय है। लेकिन एक बात स्पष्ट है: यदि इन देशों को स्थायी शांति और विकास की दिशा में आगे बढ़ना है, तो उन्हें अपने आंतरिक मुद्दों के साथ-साथ बाहरी हस्तक्षेप पर भी ध्यान देना होगा।

(लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।)

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