प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मां काली के अपमान के खिलाफ अप्रत्यक्ष तौर पर मुंह खोला और एक फिर हिन्दुत्व व हिन्दुत्व के प्रतीक चिन्हों पर अपना सर्वश्रेष्ठ समर्पण को उपस्थित कर दिया। अप्रत्यक्ष ही सही पर उन्होंने मां काली पर कीचड़ उछाड़ने वाले, हिन्दुत्व के प्रतीकों पर अपमान जनक बातें करने वालों और देश की सनातन संस्कृति के विध्वंस देखने-चाहने वालों को करारा जवाब दिया है। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिन्दुत्व के विरोधियों को करारा जवाब क्या दिया है? प्रधानमंत्री की भाषा बहुत ही सभ्य और हिन्दुत्व के प्रति सम्मान को बढ़ाने वाली है। पीएम मोदी ने कहा कि मां काली भारत के भक्ति के केन्द्र हैं और मां काली का आशीर्वाद देश को प्राप्त है, जब आस्था इतनी प्रबल हो तब शक्ति हमारा साक्षात पथ प्रदर्शन करती है, भारत आज इसी मातृ शक्ति की उर्जा को लेकर विश्व कल्याण की भावना से आगे बढ़ रहा है, यही चेतना बंगाल की काली पूजा में दिखती है और यही चेतना पूरे देश की आस्था में दिखती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस करारे जवाब के अर्थ और निशाने की राजनीतिक खोज भी शुरू हो गयी है। निश्चित तौर पर मोदी के इस करारे जवाब के दो पहलू उत्पन्न हुए हैं। एक पहलू हिन्दुत्ववादियों का है, हिन्दुत्ववादी अब खुश हैं, हिन्दुत्ववादियों की मोदी से नाराजगी दूर हो गयी है। लेकिन दूसरा पहलू हिन्दू विरोधियों का है। हिन्दू विरोधी इस करारे जवाब से न केवल विचलित हैं, बल्कि आक्रोशित भी है, हिन्दुत्व विरोधी इस बयान में सांप्रदायिकता की खोज कर रहे हैं और भारत को एक हिन्दू राष्ट के रूप में तब्दील करने की राजनीति के तौर पर देख रहे हैं। देश के अंदर में वर्तमान में घटी कई घटनाओं में हिन्दू शंखनाद दिख रहा है। लेकिन हिन्दू शंखनाद के खिलाफ घृणा और विध्वंसक राजनीति भी चल रही है। साफ तौर पर कहा जा सकता है कि हिन्दू शंखनाद को अस्वीकार करने वाले लोग और राजनीतिक दल गर्त में मिल जायेंगे, उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं दम तोड़ देगी।
मोदी के अप्रत्यक्ष तीर के निशाने पर ममता बनर्जी और ममता बनर्जी के हिन्दू विरोधी राजनीति भी है। मां काली की सर्वाधिक पूजा-अर्चना पश्चिम बंगाल में होती है। पश्चिम बंगाल के कण-कण में मां काली बसी हुई है। कम्युनिस्टों के राज में भी मां काली के सम्मान में कोई गुस्ताखी करने का साहस नहीं कर सकता था, कम्युनिस्टों का एक बड़ा वर्ग भी मां काली का भक्त अपने आप को बताते थे और मां काली की पूजा करते थे। खुद ममता बनर्जी अपने आप को काली भक्त कहती है और काली की पूजा करती है। इधर ममता बनर्जी ने नूपुर शर्मा के कथित बयान को लेकर काफी आक्रामक राजनीति की है। नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी के लिए पुलिस से लूक आउट नोटिस भी जारी करवायी है। नूपुर शर्मा पर कार्रवाई करा कर ममता बनर्जी अपने आप को मुस्लिम भक्त और मुस्लिम हितैषी बनना चाहती है। पर ममता बनर्जी की सांसद महुआ ने मां काली का अपमान कर और मां काली के खिलाफ घृणित शब्दों की बौछार कर पश्चिम बंगाल की राजनीति को एक बार फिर उथल-पुथल कर दिया है।
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ममता बनर्जी की पार्टी की सांसद महुआ के खिलाफ राष्टव्यापी प्रतिक्रिया हुई है और महुआ के खिलाफ पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश आदि प्रदेशों में एफआईआर भी दर्ज हुई है। ममता बनर्जी पर आरोप लग रहा है कि नूपुर शर्मा पर लूक आउट नोटिस जारी करा कर गिरफ्तार कर जेल भेजवाने की मंशा रखने वाली ममता बनर्जी मां काली के अपमान पर अपने सांसद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई क्यो नहीं कर रही है? इस प्रश्न पर ममता बनर्जी का दोहरा व्यक्तित्व ही सामने आता है। नरेन्द्र मोदी ने यह कह कर कि पश्चिम बंगाल की पूजा में मां काली की भावना और चेतना स्पष्ट तौर पर विराजमान होता है से ममता बनर्जी पर ही प्रहार किया है। निश्चित तौर पर नरेन्द्र मोदी के इस बयान के बाद पश्चिम बंगाल में हिन्दुत्व को एक बड़ी शक्ति मिली है, हिन्दुत्व का समर्थक क्षेत्र बढ़ा है और 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा अपनी हिन्दुत्व की शक्ति से ममता बनर्जी का राजनीतिक विनाश कर सकती है।
ममता बनर्जी की ही बात नहीं बल्कि कांग्रेस और अन्य पार्टियों ने भी मां काली और नूपुर शर्मा के प्रश्न पर हिन्दुत्व विरोधी भावनाओं का प्रदर्शन किया है। कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने भी मां काली के अपमान में घृणित बोल बोले हैं और समर्थन किये हैं। कांग्रेस अपने सांसद के मुंह पर लगाम न लगा कर अपनी कब्र खोद रही है। उदयपुर की घटना के बाद कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा बहुत ही ज्यादा उपजा है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेस की सरकार के दौरान कोई एक नहीं बल्कि अनेक दंगे हुए हैं, उन सभी दंगों में कांग्रेस हिन्दू विरोधी साबित हुई है। उदयपुर की घटना की आधारशिला भी कांग्रेस की उदासीनता में रखी गयी थी।
पुलिस को सभी प्रकार की जानकारियां थी पर पुलिस राजनीतिक दबावों के कारण उदायपुर की घटना के दोषियों पर कार्रवाई नहीं की थी। राजस्थान कांग्रेस की सरकार और उनकी पुलिस अजमेर के मौलवी को घृणित वीडियो का बचाव कैसे करना है का ज्ञान देने का प्रसंग भी बड़ा लोमहर्षक है। राजस्थान के अंदर आज हिन्दू उसी प्रकार से डरे हुए है जिस प्रकार से हिन्दू पश्चिम बंगाल में डरे हुए हैं। राजस्थान गहलौत सरकार की हिन्दू विरोधी भावनाओं का सीधा असर सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी तथा कांग्रेस के राष्ट्रीय भविष्य पर पड़ेगा।
उदयपुर या फिर अमरावती ही नहीं बल्कि देश भर में मुस्लिम हिंसा की कई घटनाएं घटी हुई हैं। नूपुर शर्मा के कथित बयान को लेकर नमाजी हिंसा देश भर में कैसी हुई थी, यह भी उल्लेखनीय है। नमाजी हिंसा के दौरान सीधे तौर पर हिन्दुओं को निशाना बनाया गया, हिन्दू मंदिरों और हिन्दू प्रतीकों को लहूलुहान किया गया। अभी-अभी झारखंड के लोहरगा जिले में एक मंदिर को प्रतिबंधित मांस फेंक कर अपवित्र कर दिया गया। झारखंड के कई सरकारी स्कूलों को जबरदस्ती जिहादी स्कूलों में तब्दील कर दिया गया, फिर भी हेमंत सरकार जिहादी मुसलमानों पर कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं हैं।
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भारत में उल्टा ही हो रहा है। दुनिया में जहां बहुंसख्यक सुरक्षित होते हैं और अल्पसंख्यक हिंसा के शिकार होते हैं। भारत में बहुसंख्यक हिन्दू ही असुरक्षित हैं और मुस्लिम हिंसा के शिकार हैं। मुस्लिम अपने आप को अल्पसंख्यक कहते हैं और उन्हें अल्पसंख्यक की सुविधा व दर्जा भी प्राप्त है। जबकि उनकी आबादी बीस करोड़ से ज्यादा है। मुस्लिम हिंसा बेलगाम है। मुसलमानों को हिन्दू प्रतिक्रिया से भी डर नहीं है, मुसलमानों को पुलिस और न्यायपालिका की दंड व्यवस्था का भी डर नहीं है। जगह-जगह से हिन्दुओं को भगाया जा रहा है। हिन्दू जब प्रतिक्रिया देते हैं तब शशि थरूर, महुआ, ममता बनर्जी, प्रियंका गांधी, राहुल गांधी सहित विदेशी पैसे पर पलने वाले एनजीओ और देशद्रोही तबका मुस्लिम दमन की अफवाह फैला कर भारत को ही बदनाम करते हैं।
मां काली का अपमान, नूपुर शर्मा की गर्दन उड़ाने की घमकी देने की करतूत, उदयपुर, अमरावती की घटनाओं से आज हिन्दू पीड़ित है, अपने आप को असुरक्षित मान बैठा है, हिन्दुओं की सहनशीलता अब जवाब दे रही है। वैसे हिन्दू भी अब मोदी के हिन्दुत्व का समर्थन करने लगे हैं जो अपने आप को धर्मनिरपेक्ष समझते थे, कांग्रेस और कम्युनिस्ट मानसिकता के रहे हैं, ऐसे लोगों का भी मुस्लिम प्रेम अब खतरनाक और हिंसा का प्रतीक लगने लगा है।
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इधर मुस्लिम हिंसा के खिलाफ दिल्ली में विशाल प्रदर्शन हुए हैं। राजस्थान सहित कई प्रदेशों में हिन्दुओं की गोलबंदी हुई है। हिन्दुओं की गोलबंदी को हिन्दू जागरण का शंखनाद के तौर पर देखा जा रहा है। अब राजनीतिक दलों और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों को हिन्दुओं की सुरक्षा और चिंता पर ध्यान देना ही होगा। अगर राजनीतिक दल और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष तबका अब भी हिन्दुत्व विरोधी घृणित कदम पर चलते रहेंगे तो फिर ऐसे लोग हिन्दू जागरण के शंखनाद से दब कर हाशिये पर खड़े हो जायेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)