– दो चिकित्सकों की लापरवाही से आशियाना निवासी श्यामसुंदर की हुई थी मौत
– चार साल से इंसाफ के लिए भटक रहा पीड़ित, नहीं मिल रहा आंसुओं का हिसाब
लखनऊ: आशियाना निवासी अजय चतुर्वेदी का हाल बेहाल है। चार साल से पूरा परिवार सदमे में है। डॉक्टरों की लापरवाही से घर के मुखिया श्यामसुंदर की हुई मौत के बाद अजय की मां अक्सर अपने पति को याद कर बेसुध हो जाती हैं। जैसे-तैसे घर के लोग इन्हें संभालते हैं। फिर भी हर आहट से एक डर परिवार को सता रहा है कि अगर श्यामसुंदर की मौत का न्याय न मिला, तो क्या फायदा इस जीवन का। परिवार चाहता है कि जिन लोगों की वजह से मुखिया की जान गई, उन दो डॉक्टरों पर कड़ी कार्रवाई हो, ताकि किसी दूसरे का घर मेरी तरह बर्बाद न हो सके।
पेशे के ऑटोमोबाइल पार्ट्स व्यापारी अजय चतुर्वेदी ने केंद्र सरकार खासकर पीएमओ व स्वास्थ्य मंत्रालय और नेशनल मेडिकल कमीशन को पत्र लिखकर मांग की है कि उनके पिता श्यामसुंदर चतुर्वेदी की मृत्यु के मामले में आरोपी दो डाॅक्टरों की भूमिका की पुनर्विवेचना हो। आरोप है कि सात साल पहले श्यामसुंदर की मृत्यु चिकित्सकों की लापरवाही से हुई थी। बिना अनुमति के उनके पिता को अजंता हॉस्पिटल में वेंटिलेटर पर रखा गया था। फिर उसके साइडइफेक्ट्स ‘बेड सोर’ का सही ट्रीटमेंट नहीं किया गया।
अजंता अस्पताल में कार्यरत डॉ. दीपक दीवान (अब एमडी, रीजेंसी हॉस्पिटल) और सिप्स के निदेशक डॉ. रितेश पुरवार ने ‘दुरभि-संधि’ कर इलाज के नाम पर लाखों रुपए वसूले। मगर डॉक्टरों की लापरवाही के चलते मेरे पिता की जान चली गई। पीड़ित ने सारे साक्ष्यों के साथ पीएमओ केंद्र सरकार, नेशनल मेडिकल कमीशन व स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र लिखकर मामले में दोनों डॉक्टरों पर कार्रवाई की मांग की है।
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लापरवाही से हुई थी मौत
अजय के मुताबिक उन्होंने उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल में डाॅक्टरों की लापरवाही के खिलाफ शिकायत की थी। 25 अगस्त 2017 को अपनी जांच में काउंसिल ने भी माना कि उनके पिता का इलाज करने वाले डाॅ. दीपक दीवान ने उनके पिता को वेंटिलेटर पर ले जाने से पहले सही प्रक्रिया नहीं अपनाई। परिजनों की गवाही, दिनांक और भाई का पूरा नाम जैसी प्रक्रिया को अंकित भी नहीं किया गया। सही तरीके से इलाज न करके अप्राकृतिक मौत की ओर धकेला गया।
पूर्व चिकित्सक अजंता अस्पताल डाॅ. दीपक दीवान का कहना है कि इस केस में हमें बेवजह घसीटा जा रहा है। मामला न्यायालय में विचाराधीन है। इसलिए कुछ नहीं कह सकते, फैसला आने का इंतजार करिए। वहीं निदेशक सिप्स अस्पताल डाॅ. रितेश पुरवार का कहना है कि अस्पताल में बहुत से मरीज भर्ती होते हैं। इलाज के दौरान जिनकी मृत्यु होती है, उन सबमें हमारा क्या दोष?
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