अरबिन्द शर्मा अजनवी
अरबिन्द शर्मा अजनवी

रिमझिम रिमझिम बरस रही,
बारिश की बूँदे प्यारी।
हरे भरे हैं वृक्ष सभी,
मुस्कातीं बगिया सारी।।

धीरे-धीरे डोल रही है,
अल्हड़ मस्त हवाएं।
अनुराग हुआ उन्मुक्त हृदय,
हम कैसे इसे दबाएं?

पिउ-पिउ की ले मधुर राग,
है कोयल गीत सुनाती।
फूल-फलों से लदी डालियां,
झूम-झूम इठलाती।।

सुरभित हैं चहु ओर दिशाएं,
गुंजन उसपर भौरों का।
दुल्हन सजी प्रीत को अपने,
डोल रहा मन औरों का।।

उमड़ रहे हैं काले बादल,
मधुरस वर्षा करने को।
पपीहा सी आतुर धरती,
उरन्तर में जल भरने को।।

सोंधी महक उठी मिट्टी से,
याद पिया की आये।
तन्हाई औ विरह अग्नि,
तन-मन में आग लगाये।।

बादल के संग छुप-छुप कर,
चंदा करे ठीठोली।
रात चांदनी, नभ के तारे,
साथ बने हमजोली।।

शीतल मंद हवाएं अब तो ,
प्रेम ह्रदय को रुला रही है।
कब आओगे प्रियतम मेरे,
प्रेयसी तुमको बुला रही है।।

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